Lord ram : हनुमानजी की पहली स्तुति
Lord ram : आज हम आपको यह बताएंगे कि हनुमान जी की पहले स्थिति क्यों की जाती है भगवान राम को जो पूजते हैं लेकिन उनकी पूजा करने के पहले हनुमान जी का आह्वान क्यों किया जाता है। आपको याद होगा कि जब हनुमानजी लंका का दहन कर रहे थे तब उन्होंने अशोक वाटिका को इसलिए नहीं जलाया था क्योंकि वहां सीताजी को रखा गया था। जहा दूसरी ओर उन्होंने विभीषण का भवन इसलिए नहीं जलाया था क्योंकि विभीषण के घर के द्वार पर तुलसी का पौधा लगा हुआ था। जहा भगवान विष्णु का पावन चिह्न शंख, चक्र और गदा का चित्र भी बना हुआ था। वही सबसे सुखद तो यह था कि उनके घर के ऊपर ‘राम’ नाम लिखा हुआ था। जिसे देखकर हनुमानजी ने उनके भवन को नहीं जलाया था।
वही विभीषण के शरण याचना करने पर सुग्रीव ने श्रीराम से उसे शत्रु का भाई व दुष्ट बताकर उनके प्रति आशंका भी प्रकट की थी और उसे पकड़कर दंड देने का भी सुझाव दिया था। पर हनुमानजी ने उन्हें दुष्ट की बजाय शिष्ट बताकर शरणागति देने की वकालत भी प्रभु श्री राम से की थी।
Lord ram : वही इस पर श्रीरामजी ने विभीषण को शरणागति न देने के सुग्रीव के प्रस्ताव को अनुचित बताया था और हनुमानजी से कहा कि आपका विभीषण को शरण देना तो ठीक है किंतु उसे शिष्ट समझना ठीक नहीं है।
जिसके बाद हनुमानजी ने कहा कि तुम लोग विभीषण को ही देखकर अपना विचार प्रकट कर रहे हो मेरी ओर से भी तो देखो, मैं आखिर ऐसा क्यों चाहता हूं। फिर कुछ देर हनुमानजी ने रुककर कहा- जो एक बार विनीत भाव से मेरी शरण की याचना करता है और यह कहता है- ‘मैं तेरा हूं, उसे मैं अभयदान प्रदान कर देता हूं।यह मेरा व्रत है इसलिए विभीषण को अवश्य शरण दी जानी चाहिए।
Lord ram : जिसके बाद इंद्र आदि देवताओं के बाद धरती पर सर्वप्रथम विभीषण ने ही हनुमानजी की शरण लेकर उनकी स्तुति की थी। फिर विभीषण को भी हनुमानजी की तरह चिरंजीवी होने का वरदान मिला है। जहा वे भी आज सशरीर जीवित हैं। विभीषण ने हनुमानजी की स्तुति में एक बहुत ही अद्भुत और अचूक स्तोत्र की रचना भी की है। विभीषण द्वारा रचित इस स्तोत्र को ‘हनुमान वडवानल स्तोत्र’ भी कहा जाता हैं।
इसके बाद हनुमानजी ने सबसे पहले सुग्रीव को बाली से बचाया और सुग्रीव को श्रीराम से मिलाया। फिर उन्होंने विभीषण को रावण से बचाया और उनको राम से मिलाया। हनुमानजी की कृपा से ही दोनों को ही भयमुक्त जीवन और राजपद मिला। इसी तरह हनुमानजी ने अपने जीवन में कई राक्षसों और साधु-संतों को भयमुक्त और जीवनमुक्त किया है।