Indian history : 200 साल पहले अजंता की गुफाओं में क्यू होती थी पूजा
Indian history : आज हम कुछ जानकारी देने वाले हैं जो आज से पहले आपने नहीं जानी होगी। अजंता की गुफा जहां सैकड़ो नहीं हजारों लोग घूमने के लिए जाते हैं लेकिन उसके बारे में कुछ ऐसी मान्यता है जिसके बाद लोग वहां की पूजा भी करते थे। लिए हम आपको इसी वजह से बताने वाले हैं कि आखिर वहां पूजा क्यों हुआ करती थी।
आपको बतादे की अजंता की गुफाएँ महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में स्थित हैं और ये प्राचीन बौद्ध गुफाएँ मानी जाती हैं। इन गुफाओं का निर्माण लगभग 2वीं शताब्दी ईसा पूर्व से 6वीं शताब्दी ईस्वी के बीच हुआ था। जहा ये गुफाएँ मुख्य रूप से बौद्ध धर्म से जुड़ी हुई हैं और इनमें बुद्ध तथा बोधिसत्वों की मूर्तियाँ एवं चित्रित भित्तिचित्र मे बनी हुई हैं।
Indian history : आज भी यहाँ पूजा किए जाने के कुछ प्रमुख कारण हैं
1. बौद्ध धर्म की धार्मिक की है यहा महत्ता -: अजंता की कुछ गुफाओं में स्तूप और चैत्यगृह यहाँ बने हुए हैं, जहाँ भगवान बुद्ध की पूजा हुआ करती है। साथ ही विशेष रूप से गुफा संख्या 9, 10, 19, 26 में चैत्यगृह हैं, जहाँ बौद्ध श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं।
2. धार्मिक आस्था से परिपूर्ण -: यही नहीं यह स्थानीय लोग और पर्यटक यहाँ बुद्ध की मूर्तियों के आगे प्रार्थना करते हैं, दीप जलाते हैं और ध्यान भी लगाते हैं।
3. आध्यात्मिक शांति -: इसके अलावा यह स्थान ध्यान और साधना के लिए काफी प्रसिद्ध है, इसलिए कई लोग यहाँ आकर आत्मिक शांति का अनुभव भी करा करते हैं।
4. पुरानी परंपरा -: इसके अलावा कुछ स्थानों पर हिंदू और जैन धर्म के लोग भी ज्यादा श्रद्धा रखते हैं, और वे इसे एक पवित्र स्थान भी मानते हैं।
Indian history : आइए जानते है इसका रोचक किस्सा
आपको बतादे की जब ब्रिटिश खोजकर्ता ने इस गुफा को फिर से खोजा गया था।
सन 1819 में, एक ब्रिटिश अधिकारी जॉन स्मिथ शिकार करने के दौरान जंगलों में वे घूम रहे थे। तभी अचानक उनकी नजर एक पहाड़ी पर बनी गुफा की आकृति पर पड़ी हुई थी, वही जो पेड़ों और झाड़ियों से ढकी हुई थी। इसके अलावा जब वे करीब गए, तो उन्होंने देखा कि यह कोई साधारण गुफा नहीं है, बल्कि यह एक प्राचीन मंदिर जैसी संरचना थी।
जहा उत्सुकतावश उन्होंने अपने साथियों को बुलाया है और गुफा में घुसने का प्रयास भी किया था। जब उन्होंने अंदर जाकर देखा, तो उन्हें भित्तिचित्रों और बुद्ध की विशाल प्रतिमाओं से सजी हुई गुफाएँ यहाँ मिलीं थी।
वही सबसे रोचक बात यह है कि जॉन स्मिथ ने उत्साह में आकर एक गुफा की दीवार पर अपना नाम और तारीख (28 अप्रैल 1819) उकेर दिया था, जो आज भी वहाँ देखा जा सकता है। हालाँकि, यह ऐतिहासिक धरोहर के प्रति एक लापरवाही थी, फिर भी इस खोज ने अजंता की गुफाओं को दुनिया के सामने लाने में मदद की।
आज, अजंता गुफाएँ यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल के रूप में संरक्षित हैं और लाखों पर्यटक यहाँ आते हैं।