Epidic : नंदीदेव के सींगों को स्पर्श करने की आध्यात्मिक महत्ता
Epidic : हिंदू धर्म में नंदीदेव केवल भगवान शिव के वाहन नहीं हैं, बल्कि वे शिव की चेतन शक्ति और उनके रक्षक स्वरूप के प्रतीक भी माने जाते हैं। शिवमंदिरों में शिवलिंग के ठीक सामने विराजमान नंदी की मूर्ति न केवल भक्तों की श्रद्धा का केंद्र होती है, बल्कि एक विशेष आध्यात्मिक तंत्र का भी अंग होती है। विशेष रूप से जब भक्त अंगूठे और तर्जनी उंगली से नंदीदेव के सींगों को स्पर्श करता है, तब एक विशिष्ट मुद्रा बनती है, जो आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है।
यह मुद्रा पाइप के संकीर्ण छिद्र से निकलती हवा की तरह कार्य करती है, जो ऊर्जा के प्रवाह को तीव्र और लक्षित करती है। जैसे पाइप से हवा एक दिशा में तेज़ गति से निकलती है, वैसे ही यह मुद्रा शिवलिंग से निकलने वाली दिव्य ऊर्जा (शक्ति) को अधिक तीव्रता से साधक के भीतर आकर्षित करती है। इस प्रक्रिया से साधक को अतिरिक्त ऊर्जा मिलती है, जिससे उसकी साधना और ध्यान की अवस्था और भी गहन होती है।
Epidic : नंदी के सींगों को स्पर्श करने से पृथ्वीतत्त्व (स्थिरता) और आपतत्त्व (चेतनता) की तरंगें हाथों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती हैं। यह संपर्क भक्त के अंदर संतुलन और स्थिरता का संचार करता है। साथ ही, नंदी से निकलने वाली सगुण मारक तरंगें शरीर और मन के रज-तम कणों का शुद्धिकरण करती हैं। इससे साधक की सात्विकता में वृद्धि होती है, जिससे वह शिवलिंग से प्रवाहित तेजोमय ऊर्जा को सहन करने में सक्षम बनता है।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि दर्शन करते समय भक्त को नंदी और शिवपिंडी के मध्य में खड़ा या बैठा नहीं रहना चाहिए। ऐसा करना ऊर्जा प्रवाह में बाधा उत्पन्न कर सकता है। इसके बजाय नंदी के बगल में खड़े होकर शिव के दर्शन करने से ऊर्जा का प्रवाह सहज होता है और भक्त को अधिक आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होता है।
इस प्रकार, नंदीदेव के सींगों का स्पर्श केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि एक सूक्ष्म आध्यात्मिक विज्ञान है, जो साधक को शिव से गहराई से जोड़ने का माध्यम बनता है।