पंजाब प्रांत के आखिरी महाराजा दिलीप सिंह की बेटी की सन 1900 ई कि वह तस्वीर जो थी अनदेखी।
आइए जानते है कौन थे महाराजा दिलीप सिँह
भारत देश में अनेक प्रतापी राजा महाराजा हुए उनमें से कई ऐसे थे जिनका नाम आज भी इतिहास में अमर है। जहा महाराजा दिलीप सिंह जिनका कार्यकाल 1838–1893 तक रहा है जो पंजाब के आखिरी सिख समुदाय के महाराजा थे। जहा उनका जीवन ऐतिहासिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत संघर्षों से भरा रहा। आइए उनके बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करते है –
उनका प्रारंभिक जीवन
1. जन्म महाराजा दिलीप सिंह का जन्म 4 सितंबर 1838 को लाहौर यानी अब के पाकिस्तान में हुआ था।
2. उनके पिता – महाराजा रणजीत सिंह थे जिन्हें “शेर-ए-पंजाब” कहा जाता था।
3 उनकी माता: महारानी जिंद कौर थी
उनके पिता रणजीत सिंह की मृत्यु के बाद पंजाब में राजनीतिक अस्थिरता शुरू हो गई। दिलीप सिंह मात्र 5 वर्ष की उम्र में 1843 में महाराजा बन गए थे।
उनके शासन और सत्ता का पतन
1. सिख साम्राज्य का जाने अंत
दिलीप सिंह का शासन अस्थिर था क्योंकि वे नाबालिग थे, और प्रशासन उनकी मां और रीजेंट्स के हाथ में हुआ करता था।
1845-46 और 1848-49 के बीच ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और सिख साम्राज्य के बीच दो युद्ध हुए थे।
जहा सन 1849 में, द्वितीय एंग्लो-सिख युद्ध के बाद, पंजाब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन हो गया।
2.उनकी गद्दी छीन ली गई थी
आखिरकार ब्रिटिश सरकार ने उन्हें सत्ता से हटा दिया और “कोहिनूर हीरा” भी ब्रिटिश साम्राज्य को सौंपने के लिए मजबूर किया।
आखिर जीवन निर्वासन में
1. ब्रिटेन में हुआ उनका निर्वासन
दिलीप सिंह को ब्रिटिश सरकार ने इंग्लैंड भेज दिया था। जहा वहां उन्हें ईसाई धर्म अपनाने पर मजबूर किया गया था .जिसके बाद वे इंग्लैंड में एक राजसी जीवन जीने लगे और महारानी विक्टोरिया के करीब आ गए थे।
2.आखिर मे सिख धर्म में वापसी
जीवन के बाद के वर्षों में उन्होंने सिख धर्म में लौटने का प्रयास किया। जिसके बाद उन्होंने भारत वापस आने की कोशिश की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें रोक दिया।
आइए जानते है व्यक्तिगत जीवन और परिवार:
1. उनकी शादी
उन्होंने दो बार विवाह किया। पहली पत्नी बम्बा मुलर, जो आधी जर्मन और आधी इथियोपियन थीं।
2. संतान –दिलीप सिंह के कुल 8 बच्चे थे, जिनमें 6 बेटियां और 2 बेटे थे। बेटे – विक्टर दिलीप सिंह और फ्रेडरिक दिलीप सिंह।बेटियां -बम्बा सोफिया, कैथरीन, और अन्य।
इनमें से किसी ने भी उनकी विरासत को आगे नहीं बढ़ाया।
मृत्यु
महाराजा दिलीप सिंह का निधन 22 अक्टूबर 1893 को पेरिस में हुआ।
महत्वपूर्ण पहलू –
1. राजनीतिक महत्व:
दलीप सिंह का जीवन भारत के इतिहास में उपनिवेशवाद के दुष्प्रभावों का एक उदाहरण है।
उनका निर्वासन और धर्मांतरण, ब्रिटिश साम्राज्य की कूटनीति का हिस्सा था।
2. कोहिनूर का संदर्भ
कोहिनूर हीरे का हस्तांतरण उनके शासनकाल में ही हुआ, जो आज ब्रिटिश क्राउन ज्वेल्स का हिस्सा है।
महाराजा दिलीप सिंह का जीवन एक ऐसे राजा का है, जिसने बचपन में गद्दी तो संभाली, लेकिन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के कारण अपना साम्राज्य खो दिया। उनका जीवन सिख साम्राज्य के अंत और ब्रिटिश राज की शुरुआत का प्रतीक है।