Sidhi news:अंधेर नगरी अनबुझ राजा, टके शेर भाजी टके सेर खाजा!

September 29, 2024, 10:18 AM
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Sidhi news:अंधेर नगरी वही! जहां सब कुछ गड़बड़ हो, ना किसी प्रकार का न्याय हो, जहां सभी दलाल और तानाशाही स्वभाव के हों, अच्छे बुरे का भेद न हो? हमारा प्रदेश और जिला अंधेर नगरी ही है?

•  5 जनवरी 2023 को लोक सेवा केंद्र में बंदूक लाइसेंस नवीनीकरण हेतु आवेदन दिया गया।

(21 माह के बाद भी कुछ नहीं हुआ)

•  24 जुलाई 2024 को मुख्यमंत्री ऑनलाइन (जन हेतु-जन सेतु 181) में शिकायत की गई।

(65 दिन बीत जाने के बाद भी कुछ नहीं हुआ)

•  1 सितम्बर 2024 को मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक, मुख्य सचिव, कमिश्नर, कलेक्टर को फरियाद पत्र ।

(30 दिन बीत जाने के बाद कुछ नहीं हुआ)

*तीसमार खां नहीं धोखार (पुतला) निकले जनप्रतिनिधि!*

Sidhi news:फूल माला, साल, श्रीफल, कारों का काफिला, चाटुकारों कि चौकड़ी, झूंठ कि झड़ी, लफ़्फ़ाजी कि लड़ी. फोन कि घंघनती घंटी घड़ी-घड़ी बताती है आप कि औकात है बड़ी। लगा आपकी जानकारी में लाया जाय, और मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक को पत्र लिखकर जानकारी में ला कर नाकारा नौकारसाही पर नकेल लगाने एवं दंडात्मक कार्यवाही का आग्रह किया।

Sidhi news:बड़ा गुमान था पत्र लिखते समय की मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक तक बात जाएगी और मदमस्त नौकरशाही पस्त होगी। लेकिन शाबाश लोकतंत्र के प्रहरियों आप तो धोखार निकले ( जंगली जानवर से फसल बचाने हेतु किसान द्वारा खेत में लकड़ी में कपड़ा बांधकर खड़ा किया गया पुतला)। जनप्रतिनिधियों (पुतलो) माना 635 दिन के बहुत बड़ी देरी तक बंदूक लाइसेंस नवीनीकरण में देरी के कारण (अपराध) में जबाबदेहों को दण्डित करना आपके बूते में नहीं था, बजह पूँछनें में भी डर गए? कम से कम लोकसेवा केंद्र में आवेदन निराकरण कि समय सारणी देख लेते। धिक्कार है जनता हेतु जनप्रतिनिधियों कि बनाई ब्यवस्था को?

*अब के अच्छे दिन से तब के ख़राब दिन अच्छे थे!*

Sidhi news:गुलामी और राजशाही के बुरे दिन को जिन्होंने जिया है उन्हें अफसोस है आज के अच्छे दिन पर। आजादी के बाद आपातकाल नगरीको के अधिकारों पर हमला था पर ऐसा घपला नहीं था। राजसाही और आपातकाल के ख़राब दिन आज के अच्छे दिन से अच्छे थे।

Sidhi news:संविधान, स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व  के लिए सब कुछ न्योछावर करने वालों कि विरासत में मिट्टी डाल दी गईं है। अब तो समझ आने लगा कि आजादी के पहले राजशाही के दिन आजादी के वाद कि इमरजेंसी (आपातकाल) के दिन इतनें खराब तो कतई नहीं थे। राजशाही के दिनों में यदि राजा की मनमानी होती थी और उसके कुछ सामंतों की तानाशाही होती थी पर कर्मचारी ईमानदार और समाज में भरपूर नैतिकता होती थी वही इमरजेंसी में भी कुछ एक बिंदुओं के अलावा देश की नौकरशाही समय से कार्यालय आकर काम करती थी और घूस लेने की तो सोच नहीं सकती थी। धिक्कार है मौजूदा व्यवस्था को जिसमें चाहे जनप्रतिनिधि हो नौकरशाह हो उनकी अंधेर गर्दी की तबाही से हाहाकार मचा है। जनप्रतिनिधियों कि खुदगर्जी, नौकरशाही कि मनमर्जी से उड़ता अंधेर गर्दी का गर्दा नागरिकों को दमघोटू हो गया है। इनकी करतूतों नें जनता कि हालात करदी है “आगे जाए घुटने टूटे, पीछे देखे आंखें फूटे” ( जिधर जाए उधर ही मुसीबतें)।

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