तीसमार खां: हिंदी में एक कहावत जो बन गई पहचान लिए जानते हैं उसके बारे में पूरी दास्तान
आज हम आपको कुछ ऐसे किस्से सुनाने वाले हैं जो आज से पहले आपने कभी नहीं सुने होंगे और ना ही इसके बारे में किसी ने आपसे चर्चा की होगी।
हिंदी भाषी राज्य में आपने अक्सर लोगों को कहते सुना होगा- ज्यादा ‘तीसमार खां’ न बनो। जहा किताबो के अनुसार तीसमार खां का शाब्दिक मतलब होता है ऐसा व्यक्ति जिसने तीस जानवर या आदमी को मारे हुए हों। कई बार बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाले या शेखी बघारने वाले शख़्स के लिए व्यंगात्मक लहजे में भी इस कहावत का खूब इस्तेमाल करते हैं।
तो यह जानते हैं कि आखिर वह कौन सा इंसान था जिसके नाम पर यह कहावत बन गई और उसने ऐसा क्या कारनामा किया था। असल में यह इंसान हैदराबाद के छठवें निजाम मीर महबूब अली खान थे। उस जमाने में शिकार पर पाबंदी नहीं थी। राजा, महाराजा नवाब और निजाम खुलेआम शिकार किया करते थे और यह उनका प्रिय खेल था।
जहा मीर महबूब अली खान को भी शिकार का शौक था और अक्सर अपनी रियासत में कैंप लगाकर कई-कई दिन शिकार करते थे। मीर महबूब अली खान ने अपनी रियासत में 30 बाघ मारे थे। उस वक्त यह बहुत बहादुरी का काम माना जाता था। इसके बाद महबूब अली खान का नाम बहादुर के प्रतीक के तौर पर ‘तीसमार खां’ यानी 30 जानवरों को मारने वाला पड़ गया।तीसमार खां
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