Rewa state : रीवा में राजघराने से ही शुरू हुआ था फाइटर प्लेन का सफर जाने पूरा इतिहास
Rewa state : मध्य प्रदेश का विंध्य क्षेत्र सदियों पुराना इतिहास अपने आप में समेटे हुए रखा हुआ है जहां इसके लोग आज भी उसकी गाथा गाते हैं। जहा आज आपको रीवा राज्य से जुड़े हवाई यात्रा से जुड़े हये कुछ ऐसे रोचक तथ्य के बारे में हम आपको बताने जा रहे है जिसका इतिहास आज का नहीं बल्कि 110 साल पुराना है। कोई मीडिया चैनल के मुताबिक एक ऐसा जमाना था जहां रीवा का SAF मैदान हवाई पट्टी हुआ करता था जिसका संचालन खुद रीवा रियासत के राजा महाराजा किया करते थे। जहा सैकड़ों वर्ष पूर्व रीवा रियासत में तीन बड़े हमले हुए जिसमे दो युद्ध में हार मिली जबकि तीसरे युद्ध में उन्हें जीत भी मिली थी। साल 1650 ईस्वी में ओरछा के महराजा पहाड सिंह बुंदेला ने रीवा राज्य में हमला किया था जिसके बाद उस समय के युद्ध मे रीवा रियासत के महाराजा अनूप सिंह को हार का सामना हुआ था। जिसके बाद दूसरा हमला 1726 में पन्ना के महराजा छत्रसाल के बेटे ह्रदयशाह बुंदेला ने किया था दोनो युद्ध में रीवा रियासत को हार मिली थी.
Rewa state : लेकिन जब रीवा राज्य में तीसरा हमला हुआ जो की साल सन 1796 में मराठा योद्धा बाजीराव मस्तानी के पोते अली बहादुर ने किया उस दौरान रीवा राज्य के महाराजा अजीत सिंह जू देव को ईस युद्ध में रीवा राज्य की विजय मिली थी। इसके बाद कई दशकों तक अन्य राजाओं ने रीवा राज्य में अपना राज पाठ संभाल कर रखा था। जहा 1880 में महाराजा रघुराज सिंह जू देव की मृत्यु होने के बाद उनके पुत्र व्यंकट रमण सिंह जू देव ने रीवा रियासत को संभाल कर रखा हुआ था.
Rewa state : उस समय रीवा राज्य के तत्कालीन महाराजा व्यंकट रमण सिंह जू देव को पूर्व में हुए रीवा राज्य पर हमले की जानकारी उन्हे बचपन से ही थी और दोनो युद्ध में हार की बात भी उन्हे परेशान करती थी। इसके बाद उन्होंने कई ऐसे निर्णय लिए जिसके बाद रीवा का इतिहास ही बदल गया जहां उन्होंने लाइटर प्लेन को भी अपने बेड़े में शामिल करने की बात सोची। जिसके बाद सन 1914 में महाराजा व्यंकट रमण सिंह जू देव ने 18 हजार रुपये का एक लडाकू विमान भी उस समय खरीद लिया था और उस विमान का नाम रखा “रीवा” इसके बाद उसी दौरान विश्वयुद्ध भी शूरू हुआ था. ब्रिटिश हुकमत के अफसरों के कहने पर महराजा द्वारा युद्धक विमान को प्रथम विश्व युद्ध में शामिल होने के लिए “वर्मा रंगून” भेजा गया. वहां से लौटते वक्त विमान दुर्घटना का शिकार भी हो गया था, जिसके बाद महराजा ने उसका 3000 हजार रुपए देकर मरम्मत भी करवाया गया था।
Rewa state : इसके बाद साल 1915 के दौरान 22 हजार 500 में एक और लडाकू विमान भी रीवा राजकीय महाराज ने मंगाया था,जिसका नाम बांधवगढ़ के नाम से “बांधव ” रखा गया था। इसके बाद तीसरा विमान भी रीवा राज्य में शामिल हुआ और उसका नाम रीवा रियासत के बघेल राजवंश के नाम पर “बघेल” रखा गया था. इन विमानों को उड़ाने के लिए विदेश से किसी पायलेट को नही बुलाया गया इसके लिए भारत से ही तीनों ब्राह्मण पायलेट को चुना गया था तीनो पायलट लखनऊ और प्रयागराज के थे जिन्हे ट्रेनिंग के लिए इंग्लैंड भेजा गया था।
इस समय के बाद किसी भी राज्य की हिम्मत नहीं हुई कि वह रीवा राज्य पर आक्रमण कर सके क्योंकि तीन फाइटर प्लेन होने के बाद कभी भी वह किसी भी युद्ध को जीत सकते हैं ऐसा सभी का मानना था जिसके बाद कोई भी राज्य रीवा में युद्ध करने के लिए नहीं सोचा। कहां है अभी जाता है कि अंग्रेज भी रीवा राज्य में युद्ध करने का नहीं सोचते थे हालांकि इस बात का इतिहास में प्रमाण कम ही मिलता है।