Satna news:”झोली में लटकी जिंदगी: चित्रकूट में गर्भवती की मजबूरी बनी सिस्टम की शर्मिंदगी”
Satna news : चित्रकूट के थरपहाड़ से आई एक तस्वीर ने 21वीं सदी के भारत की बदहाल व्यवस्था को नंगा कर दिया। वार्ड क्रमांक 15 की गर्भवती महिला को अस्पताल पहुँचाने के लिए न सड़क थी, न एम्बुलेंस, न कोई सुविधा। बारिश ने कीचड़ और पत्थरों से रास्ते को और दुर्गम बना दिया। मजबूरी में ग्रामीणों ने लकड़ी और कपड़े से झोलीनुमा स्ट्रेचर बनाया और गर्भवती को उसमें लटकाकर अस्पताल पहुँचाया। यह तस्वीर न सिर्फ़ सिस्टम की संवेदनहीनता को उजागर करती है, बल्कि ग्रामीण भारत की उपेक्षा को भी सामने लाती है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि वे लंबे समय से सड़क की मांग कर रहे हैं। डीएम से लेकर जनप्रतिनिधियों तक, हर दरवाजा खटखटाया गया, लेकिन जवाब वही “बजट नहीं आया।” ग्रामीणों का आक्रोश जायज़ है। एक स्थानीय निवासी ने कहा, “अगर यही हाल रहा, तो किसी दिन कोई जान चली जाएगी।” यह सिर्फ़ थरपहाड़ की कहानी नहीं, बल्कि देश के उन तमाम गाँवों की हकीकत है, जहाँ बुनियादी सुविधाएँ आज भी सपना हैं।
सरकारी दावों में तो भारत डिजिटल और विकसित बन रहा है, लेकिन हकीकत में गर्भवती महिलाएँ झोली में लटककर अस्पताल पहुँच रही हैं। यह घटना सवाल उठाती है— क्या यही है ‘विकसित भारत’ का सपना? सड़क जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी न करना प्रशासन की नाकामी नहीं, तो और क्या है? ग्रामीणों की आवाज़ को अनसुना कर सिस्टम अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ सकता।
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