Sidhi news:ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित छात्रावासों में नहीं मिलती सुविधाएं
Sidhi news:जिले में आदिम जाति कल्याण विभाग के संचालित छात्रावासों एवं आश्रमों में रहने वाले बच्चों को शासन की ओर से निर्धारित सुविधाएं मुहैया नहीं हो रही हैं। पिछले वर्ष से ही इस तरह की शिकायतें सबसे ज्यादा बनी हुई हैं। तत्संबंध में चर्चा के दौरान छात्रावास एवं आश्रमों से जुड़े सूत्रों ने बताया कि व्यवस्थाओं के लिए बजट अवश्य मिलता है। उस बजट को खर्च करने की जिम्मेदारी अधीक्षकों के ऊपर रहती है। अधीक्षक छात्रावास एवं आश्रमों में रहने वाले बच्चों के लिए सुबह से लेकर रात तक की कार्ययोजनाओं एवं मीनू का निर्धारण करते हैं। सुबह बच्चों को चाय एवं नास्ता मिलना चाहिए। शहरी क्षेत्र में तो खानापूर्ति कर दी जाती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों को सीधे भोजन दिया जाता है। बीच-बीच में अवकाश या अन्य दिनों में नास्ता की औपचारिकताएं ग्रामीण क्षेत्रों में भी निभाई जाती हैं। यह दीगर बात है कि नियमित तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में नास्ता नहीं दिया जाता। इसके अलावा छात्रावासों एवं आश्रमों में बच्चों के लिए जो भोजन बनता है उसमें गुणवत्ता को पूरी तरह से नजर अंदाज किया जाता है। बच्चों को दालचावल एवं सब्जी के नाम पर पीला पानी परोसा जाता है। जिसको लेकर हमेशा शिकायतें बनी रहती हैं। छात्रावास एवं आश्रमों में पदस्थ अधीक्षक अंगद की तरह पांव जमाए हुए हैं। इनका स्थानांतरण न होने के कारण मनमानी और भी चरम पर बनी हुई है। बच्चों को नास्ता एवं भोजन के नाम पर मिलने वाला आधा बजट इनके द्वारा डकार लिया जाता है।
Sidhi news:इसके अलावा विभाग की ओर से अन्य कार्यों के लिए मिलने वाला बजट भी छात्रावास एवं आश्रमों में खर्च करने की बजाय फर्जी बिल बाउचर लगाकर हजम कर लिया जाता है। सीधी जिले के आदिवासी क्षेत्रों में छात्रावास एवं आश्रम संचालित हो रहे हैं। यहां के रहवासी बच्चों को सुविधाओं के लिए हमेशा मोहताज रहना पड़ता है। गरीब परिवारों के बच्चों का दाखिला यहां होने के कारण वह चाह कर भी कोई विरोध नहीं कर पाते हैं। उनके घर वाले भी इसी वजह से चुप रहने में ही भलाई समझते हैं। सीधी जिले में छात्र एवं छात्राओं के लिए अलगअलग छात्रावास संचालित हो रहे हैं। जिला मुख्यालय में ही संचालित आदिवासी छात्रावासों की हालत सही नहीं है।
Sidhi news:यहां संचालित छात्रावासों एवं आश्रमों की जिम्मेदारी संभालने वाले शिक्षक एवं शिक्षिकाएं पूरी तरह से स्वेच्छाचारी हैं। उसका खास कारण यह भी है कि विभाग के बड़े अधिकारी कोई आकस्मिक निरीक्षण नहीं करते हैं। जिसके चलते छात्रावास एवं आश्रमों में बच्चों को साबुन तेल जैसी छोटी सुविधाएं भी मनमानी तौर पर मिलती हैं। कई बच्चे तो अपने घरों से साबुन, तेल की व्यवस्था बनाकर रखते हैं। छात्रावास एवं आश्रम की ओर से यह सुविधाएं मिलेंगी या नहीं निश्चित नहीं रहता।
गरम कपड़ों की रहती है कमी
Sidhi news:छात्रावास एवं आश्रमों में रहने वाले बच्चों को ठंड के दिनों में गर्म कपड़े व विस्तर उपलब्ध करानें की जिम्मेदारी अधीक्षकों की रहती है। हालात यह है कि इसके लिए ठंड का मौसम शुरू होने से पूर्व ही बजट हर वर्ष मिलता है। फिरभी अधीक्षक एवं अधीक्षिकाएं फर्जी बिल बाउचर लगाकर बजट हजम कर लेते हैं। ठंड से बचने के लिए बच्चों के अभिभावक गर्म कपड़ों की व्यवस्था बनाते हैं। छात्रावास एवं आश्रमों में जो बिस्तर मौजूद है वह काफी पुराने नजर आते हैं। मालूम पड़ा है कि बिस्तरों को तब तक नहीं बदला जाता जब तक कि उनके पूरी तरह से परखच्चे नहीं उड़ जाते। शहरी क्षेत्र में छात्रावास एवं आश्रमों के बिस्तरों की स्थिति भले ही कुछ बेहतर है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में तो स्थिति काफी दयनीय बनी हुई है। नया शैक्षणिक सत्र प्रारंभ हो चुका है। छात्रावास एवं आश्रमों में प्रवेश का काम भी चल रहा है। फिर भी अधीक्षकों द्वारा छात्रावास एवं आश्रमों की स्थिति को बेहतर बनाने का कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। सबकुछ पिछले वर्ष की तर्ज पर ही संचालित करने का प्रयास किया जा रहा है। कई अधीक्षक एवं अधीक्षिकाएं ऐसी हैं जो कि स्वयं रात में वहां नहीं रुकते। जिला मुख्यालय में संचालित अधिकांश छात्रावासों के अधीक्षक रात में अपना निजी आवास में चले जाते हैं। दिन में भी उनकी उपस्थिति मनमौजी तौर पर बनी रहती है। इसी वजह से रात में कई छात्रावासों में छात्र एवं छात्राओं को कुछ परेशानियां भी उठानी पड़ती हैं। फिर भी इस मामले में अधीक्षक स्वेच्छाचारी बने हुए हैं।