1500 वर्ष पुराना चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा स्थापित महरौली का लोह स्तंभ
गुप्त सम्राट चंदगुप्त विक्रमादित्य द्वारा स्थापित महरौली का लौह स्तंभ

गुप्त सम्राट चंदगुप्त विक्रमादित्य द्वारा स्थापित महरौली का लौह स्तंभ
हम भारत की बात करते हैं जहां भारत कई ऐसे राज आज भी अपने आप में समेटे हुए हैं जो कि अब यह सब कर पाना मुश्किल होता हुआ नजर आ रहा है। यह ऐसे समय पर हुआ जब इतनी टेक्नोलॉजी नहीं थी।
जहां एक ऐसा सिस्टम बनाया गया था जो कुतुब मीनार को भी पीछे छोड़ता है यह सिर्फ ईट और गाड़ी से नहीं बनाया गया था बल्कि यह लोहे से बनाया गया था इतना ही नहीं बल्कि इसमें कारीगरी भी की गई थी लोहे को इस कदर से इतना ऊपर तक खड़ा करना और इतना लंबा खड़ा करना किसी आम इंसान की बस का नहीं है।
आपको बतादे की दिल्ली में महरौली में विष्णु स्तम्भ (कुतुब मीनार टॉवर) के पास, शुद्ध लोहे से बना एक स्तंभ है। इसमें 99.72% लोहा, शेष 0.28% अशुद्धियाँ हैं। इसकी काली-नीली सतह पर, आप जंग के केवल कुछ ही स्थानों पर कठिनाई से देख सकते हैं।
जहा यह स्तंभ महान गुप्त सम्राट चंदगुप्त विक्रमादित्य दितीय ने अपनी शकों पर विजय के उपलक्ष्य में स्थापित किया था। वही इस लौहस्तंभ में आज 1500 डेढ हजार वर्ष बीत जाने के बाद भी जंग नहीं लगी है यह लौह स्तंभ गुप्तकाल में हुए वैज्ञानिक अनुसंधान और प्रगति का घोतक है।
इस कोलोसस का वजन 6.8 टन है। निचला व्यास 41.6 सेमी है, शीर्ष पर यह 30 सेमी तक बढ़ता है। स्तंभ की ऊंचाई 7.5 मीटर है। आश्चर्यजनक बात यह है कि वर्तमान में धातु विज्ञान में शुद्ध लोहे का निर्माण एक बहुत ही जटिल विधि और कम मात्रा में यह होता है, लेकिन लोहा इतनी शुद्धता का होना आज के युग में असम्भव है।
इस अद्भुत स्तंभ की तकनीकी को आधुनिक युग में प्राप्त करना असंभव है।