Tipu sultan : यह पेंटिंग 1897 में रिचर्ड कैप्टन वुडविल द्वारा बनाई गई थी जो उस समय London illustrated में प्रकाशित हुई थी इस चित्र में सुल्तान टीपू को अंग्रेज फौज पर हमला करते हुए बताया है इस जंग में सुल्तान टीपू अपने पिता हैदर अली की फौज एक टुकड़ी को कमांड कर रहे थे।
Tipu sultan : 1797 में टीपू सुल्तान ने ज़मान शाह दुर्रानी जो की अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) के पोते थे उनके पास अपना एक क़ासिद भेजा था और भारत से अंग्रेजो को बाहर निकालने के लिए गठबंधन का प्रस्ताव रखा था। जॉर्ज डेवरेक्स ओसवेल लिखते हैं।
Tipu sultan : अफगान सम्राट ज़मान शाह दुर्रानी का नाम लंबे समय से पूरे भारत में खौफ का पर्याय था और यहां तक कि अंग्रेजों को भी अफगान सेनाओं के अपने दक्षिणी प्रांतों में घुसपैठ का डर था। अंग्रेज़ जानते थे कि दक्षिण में उनका महान दुश्मन, टीपू सुल्तान, ज़मान शाह के साथ लगातार गंठबंधन बनाने की कोशिश में है की ज़मान शाह उनकी सहायता के लिए आए और वह दोनो साथ मिलकर अंग्रेज़ो समुद्र में धकेल दें और वो वहीं पहुंच जाएं जहां से वो आए थे।
पंजाब में जब रणजीत सिंह सोलह वर्ष की आयु में अपना राजपाट की शुरूआत कर रहे थे तब ज़मान शाह को अंग्रेज़ो पर आक्रमण करने के लिए टीपू से एक महत्वपूर्ण निमंत्रण प्राप्त हुआ और 1797 में वास्तव ज़मान शाह दुर्रानी पंजाब के रास्ते भारत में प्रवेश कर रहा था जो ब्रिटिश सरकार के लिए एक खतरे का अलार्म था।
Tipu sultan : सर अल्फ्रेड लायल लिखते है कि अंग्रेजों में अफगानों की घुसपैठ की खबर से भय का माहौल बन गया था अफ़गानो के आने से पूरे उत्तर भारत में एक हड़कंप मच गया, मुसलमान उनके साथ मिलने की तैयारी कर रहे थे, अवध शासक कोई प्रभावी प्रतिरोध करने में असमर्थ थे और यदि दुर्रानी दिल्ली की तरफ बढ़ा तो अराजकता और खतरनाक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती। बंगाल की सीमा की सुरक्षा के लिए इस तरह के एक दुर्जेय मोड़ ने निस्संदेह हर उपलब्ध अंग्रेजी रेजिमेंट को उत्तर की ओर खींच लिया।
लेकिन अंग्रेजों की किस्मत अच्छी थी जो की 1798 में फारसियों (ईरान) ने अफ़गान के पश्चिमी प्रांतों पर हमला कर दिया फारसियों से अपने प्रांतो की रक्षा करने के लिए जल्दबाजी में ज़मान शाह दुर्रानी को वापस अफ़गानिस्तान लौटना पड़ा अगर ज़मान शाह और टीपू सुल्तान मिल जाते तो 224 साल पहले ही भारत से अंग्रेज़ो को खदेड़ दिया गया होता, ऐसा इतिहास बताता है।
नोट – हालांकि इस बात पर कितनी सच्चाई है या नहीं इस बात की पुष्टि नहीं हुई है। यह हमारे व्यक्तिगत राय हो सकती है, इतिहासकारों से बैठकर इस बात की समीक्षा जरूर करें और फिर इसे माने।
सोर्स – Shoaib Gazi