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प्रारंभिक भारतीय साहित्य

प्रत्येक भाषा एक सांस्कृतिक इकाई की उपज होती है किंतु कालांतर में प्रत्येक भाषा अपनी एक अलग संस्कृति का निर्माण करती हुई चलती है

वैदिक ग्रंथ के अधीन चार वेद आठ ब्रह्मांड 6 आरक्षक और तरह प्रारंभिक निषाद है

चार वेद में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है तथा अथर्ववेद सबसे नवीन है

ऋग्वेद मित्रों का संकलन है जिसे यज्ञों के अवसर पर देवताओं की प्रस्तुति के लिए विषयों द्वारा संग्रहित किया गया था ऋग्वेद के कुल मित्रों की संख्या 10000 से अधिक

यजुर्वेद ऐसे मित्रों का संग्रह है जिससे पुरोहितों द्वारा यज्ञ विधि को संपन्न कराया जाता है

सामवेद ऋग्वेद से लिए गए एक खास प्रकार के स्तुति पद्धतियों का संग्रह मात्र है जिसे ले में ढाल दिया गया है

अंतिम अथर्ववेद है जिसमें लौकिक फल देने वाले कर्मकांड तथा जादू टोना टोटका और इंद्र माया जाल से संबंधित मित्रों की उपस्थिति है

ब्रह्मांड ग की उत्तर कालीन विकास के प्रतीक है आरक्षक ग्रंथ यह ग्रंथ विशुद्ध रूप से विद्यापरक है जिनकी रचना वन जंगल में हुई थी

उपनिषदों का केंद्रीय भूत सिद्धांत है ब्रह्मांड तथा आत्मा एक है तथा ब्रह्मांड को छोड़कर बाकी सब मिला हुआ है

ऋग्वेद एवं सामवेद एक समान मूलक समाज के मन भावन को व्यक्त करते हैं वही यजुर्वेद एवं अथर्ववेद उत्तर वैदिक समाज में शुरू हुए विभाजन को दर्शाते हैं

ब्रह्मांड ग्रंथ सुव्यवस्थित गद्य में लिखे गए हैं तथा ऐसे संस्करणों में लिखे गए हैं जो एक दूसरों से काफी भिन्न है प्रमुख ब्रह्मांड में शामिल हैं ऐतरेय ब्रह्मांड पांच विश्व ब्रह्मांड शतपथ ब्रह्मण आदि

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