Indian history : जब भारत की रियासतों में राज करते थे चीते: विलुप्ति से पहले का सुनहरा शिकारकाल”
Indian history : बहुत कम लोगों को यह बात मालूम है कि आज़ादी से पहले भारत में चीते न केवल जंगलों में स्वतंत्र विचरण करते थे, बल्कि राजा-महाराजाओं के पालतू भी होते थे। इतिहास के पन्ने गवाही देते हैं कि इन तेज़तर्रार शिकारी जानवरों का कभी भारतीय दरबारों में खास दर्जा हुआ करता था। चीते शाही शिकार के अभिन्न अंग थे और उन्हें बाकायदा प्रशिक्षित किया जाता था।
Indian history : माना जाता है कि मध्यकाल में दिल्ली के सुल्तान फिरोज़ शाह तुगलक पहला ऐसा शासक था जिसने चीतों को पालना शुरू किया और उनकी मदद से शिकार करना शुरू किया। इस परंपरा को सबसे भव्य रूप मुगल सम्राट अकबर के काल में मिला, जिनके पास लगभग एक हज़ार पालतू चीते हुआ करते थे। अकबर के पुत्र जहांगीर ने अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ में लिखा है कि उसके पिता ने जीवनभर में कुल 9,000 चीते पाले थे।
15वीं से 17वीं शताब्दी को भारत में चीतों का ‘स्वर्ण काल’ कहा जा सकता है। न सिर्फ मुगल दरबार, बल्कि भारत की छोटी-बड़ी रियासतों में भी चीते पाले जाते थे। बैलगाड़ियों में बैठाकर इन चीतों को खासतौर पर शिकार पर ले जाया जाता था। उस समय यह एक शाही परंपरा थी जो सत्ता और वैभव का प्रतीक मानी जाती थी।
लेकिन ब्रिटिश काल आते-आते यह तस्वीर बदलने लगी। अंग्रेज़ों ने न सिर्फ भारतीय राजाओं से उनकी सत्ता छीनी, बल्कि जंगलों और वन्यजीवों को भी अपने शौक का शिकार बना डाला। चीते भी इससे अछूते नहीं रहे। शिकार और पालतू नर-मादा चीतों के बीच प्रजनन की कमी के कारण उनकी संख्या घटती चली गई।
अंततः 1947-48 में भारत के अंतिम तीन चीतों का शिकार मध्य प्रदेश के कोरिया रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव द्वारा किया गया। यह ऐतिहासिक क्षण भारतीय उपमहाद्वीप में चीता युग की समाप्ति का प्रतीक बन गया। इसके बाद भारत सरकार ने 1952 में देश को आधिकारिक रूप से ‘चीता-विलुप्त राष्ट्र’ घोषित कर दिया।
आज जब अफ्रीका से चीतों को फिर से भारत लाने की कोशिशें हो रही हैं, यह जरूरी है कि हम अपने इतिहास को याद करें — जब चीते जंगलों में नहीं, दरबारों में राज किया करते थे।