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Rewa riyasat:आखिर क्यों बना रीवा एक राज्य जाने इसके पीछे की दास्तान

Manoj Shukla

By Manoj Shukla

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Rewa riyasat : रीवा राज्य, जो आज मध्य प्रदेश के रीवा जिले के रूप में जाना जाता है, भारत के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह राज्य बघेल वंश की रियासत के रूप में विख्यात था, जिसकी स्थापना लगभग 13वीं शताब्दी में हुई और जो अपनी समृद्ध परंपराओं, प्राकृतिक संपदा और अद्वितीय पहचान के लिए प्रसिद्ध रहा।

इस लेख में हम रीवा राज्य के इतिहास, इसके महत्व, अन्य राज्यों से इसकी भिन्नता और कुछ अनकही कहानियों पर प्रकाश डालेंगे।

Rewa riyasat : रीवा राज्य का इतिहासरीवा राज्य की कहानी बघेल राजपूतों से शुरू होती है, जो मूल रूप से गुजरात के सोलंकी या चालुक्य वंश से संबंधित थे। इतिहासकारों के अनुसार, बघेल वंश की नींव 13वीं शताब्दी में महाराजा व्याघ्रदेव ने रखी थी, जिन्हें अग्निकुंड से उत्पन्न राजपूत वंशज माना जाता है। 1236 ईस्वी के आसपास भीमलदेव ने इस क्षेत्र में अपनी सत्ता स्थापित की। हालांकि, रीवा का वास्तविक महत्व तब बढ़ा जब 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर ने बांधवगढ़ को नष्ट कर दिया। इसके बाद 1597 में रीवा को बघेल वंश की राजधानी बनाया गया। 1618 में राजा विक्रमादित्य सिंह ने रीवा को और मजबूत किया, जिससे यह क्षेत्र बघेलखंड का केंद्र बन गया।

रीवा का इतिहास प्राचीन काल से ही समृद्ध रहा है। यहाँ गुप्त, कलचुरी, चंदेल और प्रतिहार जैसे वंशों के प्रभाव के प्रमाण मिलते हैं। मध्यकाल में यह एक महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग का हिस्सा था, जो कौशांबी, प्रयाग, बनारस और पाटलिपुत्र को पश्चिमी और दक्षिणी भारत से जोड़ता था। बघेल वंश के शासकों ने इस क्षेत्र को कला, संस्कृति और शासन के क्षेत्र में समृद्ध किया। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में रीवा के ठाकुर रनमत सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ 2000 सैनिकों के साथ विद्रोह किया, जिससे इसकी क्रांतिकारी भूमिका भी उजागर हुई।ब्रिटिश काल में रीवा एक प्रमुख रियासत बन गया। 1912 में यहाँ के शासक ने ब्रिटिश सत्ता के साथ समझौता किया और इसे बघेलखंड एजेंसी की राजधानी बनाया गया।

Rewa riyasat : आजादी के बाद 1948 में रीवा को विंध्य प्रदेश की राजधानी बनाया गया, और 1956 में इसे मध्य प्रदेश में शामिल कर लिया गया। इस तरह, रीवा का इतिहास शौर्य, संस्कृति और परिवर्तन का एक अनूठा मिश्रण है। रीवा का महत्वरीवा का महत्व केवल इसके शासकों तक सीमित नहीं था। यह क्षेत्र प्राकृतिक और सांस्कृतिक संपदा का खजाना रहा है।

रीवा को “सफेद शेरों की धरती” के रूप में विश्व भर में प्रसिद्धि मिली। 1951 में महाराजा मार्तंड सिंह ने यहाँ के जंगलों से पहला सफेद शेर “मोहन” पकड़ा, जिसकी संतानों ने विश्व भर में इस प्रजाति को फैलाया। यहाँ के घने जंगल, खनिज संसाधन और नदियाँ जैसे टोंस, बीहर और बिछिया ने इसे आर्थिक और पर्यावरणीय रूप से समृद्ध बनाया।

Rewa riyasat : रीवा का सांस्कृतिक महत्व भी कम नहीं है। यह तानसेन और बीरबल जैसे महान व्यक्तित्वों की जन्मस्थली रहा है। तानसेन, जो अकबर के नवरत्नों में से एक थे, ने अपनी संगीतमयी प्रतिभा से रीवा की कीर्ति बढ़ाई। इसके अलावा, बघेल वंश के शासकों ने कला और स्थापत्य को प्रोत्साहन दिया। रीवा का किला, गोविंदगढ़ पैलेस और रानी तालाब जैसे स्थल आज भी इसकी भव्यता के गवाह हैं।रीवा का धार्मिक महत्व भी उल्लेखनीय है। यहाँ का चिरहुला हनुमान मंदिर और महाशिवरात्रि का भव्य आयोजन, जिसमें विश्व की सबसे बड़ी कड़ाही में खिचड़ी बनाई जाती है, इसे अनूठा बनाता है। यह आयोजन न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक एकता का भी प्रतीक है।

अन्य राज्यों से अंतररीवा राज्य की विशिष्टता कई पहलुओं में देखी जा सकती है।

Rewa riyasat : पहला, इसकी भौगोलिक स्थिति इसे अन्य रियासतों से अलग करती थी। विंध्य पठार और कैमूर पर्वतमाला के बीच बसा यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण था। यहाँ के जंगल और खनिज अन्य राज्यों के लिए आकर्षण का केंद्र थे, जो इसे आर्थिक रूप से मजबूत बनाते थे।

दूसरा, बघेल वंश का शासन और उनकी नीतियाँ इसे अन्य राज्यों से भिन्न बनाती थीं। जहाँ कई रियासतें मुगलों या ब्रिटिशों के अधीन हो गईं, वहीं रीवा ने अपनी स्वायत्तता को लंबे समय तक बनाए रखा। बघेल शासकों ने स्थानीय जनजातियों जैसे गोंड और कोल को अपने शासन में शामिल किया, जिससे यहाँ की सामाजिक संरचना समावेशी रही।

Rewa riyasat : तीसरा, रीवा की सांस्कृतिक और प्राकृतिक पहचान इसे अद्वितीय बनाती थी। सफेद शेरों की उत्पत्ति और संरक्षण में रीवा का योगदान इसे विश्व पटल पर अलग स्थान दिलाता है। अन्य राज्यों में ऐसी कोई विशेष प्रजाति या संरक्षण की कहानी नहीं मिलती। इसके अलावा, यहाँ की बघेली बोली और स्थानीय परंपराएँ भी इसे विशिष्ट बनाती हैं।

अनकही कहानियाँ और दास्तानें

Rewa riyasat : रीवा के इतिहास में कई अनकही कहानियाँ हैं जो इसके गौरव को और बढ़ाती हैं। एक ऐसी कहानी ठाकुर रनमत सिंह की है, जिन्होंने 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। उनकी सेना ने क्योटी के जंगलों में अंग्रेजी फौज को कड़ी टक्कर दी। कहा जाता है कि रीवा के तत्कालीन महाराज रघुराज सिंह ने छिपे तौर पर इन क्रांतिकारियों की मदद की, हालाँकि वे औपचारिक रूप से ब्रिटिशों के साथ थे।

Rewa riyasat : एक अन्य कहानी सफेद शेर “मोहन” की है। 1951 में जब इसे पकड़ा गया, तो यह गोविंदगढ़ पैलेस से भाग निकला था। बाद में इसे मुकुंदपुर के जंगल में फिर से पकड़ा गया। इस घटना ने रीवा को वैश्विक सुर्खियों में ला दिया। मोहन की संतानों को दिल्ली और विदेशों तक भेजा गया, जिससे रीवा का नाम शेरों के संरक्षण से जुड़ गया।

रीवा की एक और अनकही दास्तान यहाँ के परिहार राजपूतों की है। जब सोलंकी राजा व्याघ्रदेव मध्य प्रदेश आए, तो उनके साथ परिहार राजपूत भी थे। इन्होंने बघेल वंश के लिए कई युद्ध लड़े, जैसे नएकहाई, बुंदेलखंडी और चुनार घाटी के युद्ध। इनकी वीरता ने रीवा की सैन्य शक्ति को मजबूत किया।

Rewa riyasat : महाशिवरात्रि का उत्सव भी एक अनोखी कहानी है। 40 साल पुरानी इस परंपरा में 2025 में विश्व की सबसे बड़ी कड़ाही और नगाड़े ने इतिहास रचा। यह आयोजन रीवा की एकता और भक्ति का प्रतीक बन गया।निष्कर्षरीवा राज्य का इतिहास गौरव, संघर्ष और संस्कृति का एक जीवंत दस्तावेज है। इसका महत्व इसके शासकों, प्राकृतिक संपदा और सांस्कृतिक योगदान में निहित है। अन्य राज्यों से इसकी भिन्नता इसकी स्वायत्तता, संसाधनों और अनूठी पहचान में दिखती है। अनकही कहानियाँ इसकी वीरता और विरासत को और गहराई देती हैं। आज भी रीवा अपनी ऐतिहासिक धरोहर और प्रगति के साथ मध्य प्रदेश का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बना हुआ है। यहाँ की कहानियाँ आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेंगी।

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मै मनोज कुमार शुक्ला 9 सालों से लगातार पत्रकारिता मे सक्रिय हूं, समय पर और सटीक जानकारी उपलब्ध कराना ही मेरी पहली प्राथमिकता है।

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