पनपथा बफर में खुलेआम शिकार, सवालों के घेरे में वन विभाग की निगरानी
उमरिया तपस गुप्ता (7999276090)
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के पनपथा बफर क्षेत्र में मादा चीतल के नृशंस शिकार का मामला सामने आने के बाद वन विभाग की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। जिस जंगल को सुरक्षित माना जाता है, वहीं कुत्तों से हांका लगाकर चीतल को मार दिया गया और मांस खुलेआम बांट दिया गया, लेकिन वन अमला समय रहते इसकी भनक तक नहीं लगा सका।
घटना खुसरिया बीट के कक्ष क्रमांक 191, बड़वाहार जंगल की है, जहां मोलई पिता मंगल सिंह और बिहारी सिंह, निवासी बनासी तहसील व्योहारी जिला शहडोल ने कुत्तों की मदद से चीतलों के झुंड को घेरा। कुत्तों ने एक मादा चीतल को काटकर गिराया, जिसके बाद आरोपियों ने डंडों से पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी। इसके बाद चीतल का मांस काटकर अन्य लोगों में बांटा गया और घर आए रिश्तेदारों को भी खिलाया गया।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि बफर क्षेत्र में इतनी बड़ी वारदात कैसे हो गई और वन विभाग को इसकी जानकारी बाद में मिली। ग्रामीणों का कहना है कि इलाके में गश्त नाम मात्र की होती है, जिससे शिकारियों के हौसले बुलंद हैं। यदि समय पर निगरानी होती, तो एक वन्यजीव की जान बचाई जा सकती थी।
मामले के उजागर होने के बाद क्षेत्र संचालक एवं उपसंचालक के निर्देश पर सहायक संचालक पनपथा के मार्गदर्शन में वन विभाग हरकत में आया और चार आरोपियों मोलई, बिहारी सिंह, रामदास सिंह और शिवप्रसाद को 22 दिसंबर 2025 को गिरफ्तार किया गया। आरोपियों के पास से करीब 3 किलो कच्चा चीतल मांस और एक कुल्हाड़ी जब्त की गई है।
हालांकि गिरफ्तारी के बाद विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा है, लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि घटना से पहले विभाग कहां था। बफर जोन में लगातार हो रही अवैध गतिविधियां यह दर्शाती हैं कि निगरानी व्यवस्था कमजोर है।
आज 23 दिसंबर 2025 को आरोपियों को न्यायालय में पेश किया जा रहा है। वन्यजीव प्रेमियों और स्थानीय लोगों ने मांग की है कि केवल गिरफ्तारी ही नहीं, बल्कि जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका की भी जांच हो, ताकि भविष्य में पनपथा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में वन्यजीवों की सुरक्षा वास्तव में सुनिश्चित हो सके।
