Sidhi news:तापमान इकाई में, कोहरे में डूबी सड़क, ठिठुरते हाथ, कपकपाती सुबह। इन सबके बीच “पैसा नहीं लुटायेंगे,जेनेरिक दवाएँ खाएँगे”; और “मैं भी मोगली की नारे” लगाते मोगली पलटन के बाल सेनानी। पाँच जनवरी की भोर ऋषिकेश फाउंडेशन की बाल सेना मोगली पलटन द्वारा जेनेरिक दवाओं के प्रति जागरूकता हेतु साइकिल रैली निकाली गई। रैली गांधी चौराहा से प्रारंभ होकर कलेक्ट्रेट,संजय गांधी कॉलेज से कॉलेज-स्टेडियम रोड होते हुए पुनः गांधी चौक पहुंच कर समाप्त हुई। अपने वादे के अनुसार सड़क पर उतरे और अपने हौंसले से कोहरे को पिघला दिया। जब लोग भाप उगलती चाय का कप पकड़ने तक लिए जेब से हाथ निकालने में घबरा रहे थे, तब मोगली पलटन के बाल सेनानी “मैं भी मोगली” के नारे दहाड़ रहे थे।
*जेनरिक दवाएँ क्या होती हैं?*
Sidhi news:आम तौर पर सभी दवाएं एक तरह का \”केमिकल सॉल्ट\’ होती हैं। इन्हें शोध के बाद अलग-अलग बीमारियों के लिए बनाया जाता है। जेनेरिक दवा जिस सॉल्ट से बनी होती है, उसी के नाम से जानी जाती है। जैसे- दर्द और बुखार में काम आने वाले पैरासिटामोल सॉल्ट को कोई कंपनी इसी नाम से बेचे तो उसे जेनेरिक दवा कहेंगे। वहीं, जब इसे किसी ब्रांड जैसे- क्रोसिन के नाम से बेचा जाता है तो यह उस कंपनी की ब्रांडेड दवा कहलाती है। चौंकाने वाली बात यह है कि सर्दी-खांसी, बुखार और बदन दर्द जैसी रोजमर्रा की तकलीफों के लिए जेनरिक दवा महज 10 पैसे से लेकर डेढ़ रुपए प्रति टैबलेट तक में उपलब्ध है। ब्रांडेड में यही दवा डेढ़ रुपए से लेकर 35 रुपए तक पहुंच जाती है।
*क्या जेनरिक दवाईयां ब्रांडेड दवाईयों की तरह ही असरदार हैं?*
जेनरिक दवाईयां बनाने में उन्हीं फार्मूलों और सॉल्ट का उपयोग किया जाता है, जो ब्रांडेड कंपनियां पहले ही प्रयोग कर चुकी हैं। इसलिए जेनरिक दवाईयों का ब्रांड नेम वाली दवाईयों के समान ही जोखिम और लाभ हैं। इसलिए जेनरिक दवा भी मनुष्य के शरीर पर पेटेंट दवा के समान ही असर करेगी।
Sidhi news:ऋषिकेश फ़ाउंडेशन के प्रवक्ता ने कहा कि डॉक्टर जेनेरिक दवाएँ लिखें या न लिखें; मरीज जेनेरिक दवाओं पर भरोसा करें न करें; जन औषधि केंद्रों में जेनेरिक दवाएँ मिलें या न मिलें पर हम अपनी कोशिश जारी रखेंगे। मोगली पलटन द्वारा मिशन रामबाण अभियान के तहत ये साइकल रैली निकाली गई।