विधायकों की दी सौगात कबाड़ में तब्दील, 5 साल भी सड़क पर नहीं दौड़ पाई विधायकों के द्वारा दी गई एंबुलेंस
उमरिया तपस गुप्ता (7999276090)
जनता की सुविधा के नाम पर बांटी गई करोड़ों की योजनाएं अक्सर कागजों पर ही रह जाती हैं, इसका ताजा उदाहरण है उमरिया जिले की वो एम्बुलेंसें जो विधायक निधि से खरीदी गई थीं। मुश्किल से कुछ महीने सड़क पर दौड़ने के बाद ये लाखों की एम्बुलेंसें अब अस्पताल परिसरों में कबाड़ बन चुकी हैं। विडंबना यह है कि इन्हें खरीदे हुए अभी पांच साल भी पूरे नहीं हुए।
जनता की जान बचाने वाली एम्बुलेंसें खुद मांग रहीं जिंदगी
वर्ष 2021-22 में जिले के चार स्वास्थ्य केंद्र मानपुर, पाली, चंदिया और नौरोजाबाद को स्थानीय विधायकों की विधायक विकास निधि से एक-एक एम्बुलेंस दी गई थी। बांधवगढ़ और मानपुर विधानसभा क्षेत्र में दो-दो एम्बुलेंसें दी गईं। हर गाड़ी की लागत लगभग 20 लाख रुपए थी। इन वाहनों को मरीजों की आपातकालीन सेवा के लिए खरीदा गया था, लेकिन कुछ महीनों बाद ही ये गाड़ियां खराब होकर अस्पतालों में खड़ी रह गईं।
आज स्थिति यह है कि जिन एम्बुलेंसों से मरीजों को जीवनदान मिलना चाहिए था, वे अस्पताल के पीछे धूल खा रही हैं। इंजन जाम, टायर पंक्चर, बैटरी डेड और बॉडी पर जंग की परत यह हाल किसी कबाड़खाने का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य केंद्र परिसर में खड़े वाहन का है।
विधायक बोले हमने तो दे दीं, अब जिम्मेदारी प्रशासन की
जब इस मामले में बांधवगढ़ विधायक शिवनारायण सिंह से बात की गई तो उन्होंने कहा कि सन 2021-22 में विधायक निधि से एम्बुलेंस दी गई थी। बाद में शासन ने उन्हें 108 सेवा में मर्ज कर दिया। अब 108 के ठेकेदार की जिम्मेदारी है कि वे इन्हें चलाएं। लेकिन तालमेल की कमी से एम्बुलेंसें खड़ी हैं। वहीं मानपुर विधायक मीना सिंह से संपर्क करने का प्रयास किया गया तो उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया।
जनता के बीच यह सवाल उठ रहा है कि जब विधायक निधि से खरीदी गई एम्बुलेंसें जनता की सुविधा के लिए दी गई थीं, तो उनका रखरखाव और निगरानी सुनिश्चित करना क्या विधायकों की नैतिक जिम्मेदारी नहीं थी? विधायक निधि से गाड़ियां देने का श्रेय तो तुरंत लिया गया, लेकिन अब जब वही गाड़ियां कबाड़ में तब्दील हो गईं, तो कोई जवाबदेही लेने को तैयार नहीं।
अधिकारी बोले 108 को हैंडओवर की थी
मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी वी.एस. चंदेल ने कहा कि इन एम्बुलेंसों को 108 सेवा को हैंडओवर कर दिया गया था। उन्हें चलाना ठेकेदार की जिम्मेदारी थी। लेकिन सवाल यह है कि हैंडओवर के बाद क्या स्वास्थ्य विभाग ने कभी यह जानना चाहा कि एम्बुलेंसें चल भी रहीं या नहीं?
108 सेवा के नोडल अधिकारी के. सी. सोनी ने तो इस पर सीधा पल्ला झाड़ लिया। उनका कहना था कि मुझे जबरदस्ती नोडल अधिकारी बना दिया गया है आप सीएमएचओ से बात कीजिए। ऐसे बयानों से साफ है कि जिम्मेदारी एक-दूसरे पर टालने की सरकारी परंपरा यहां भी जारी है।
कांग्रेस ने विधायकों और प्रशासन दोनों को घेरा
कांग्रेस जिलाध्यक्ष विजय कोल ने कहा कि जनता के पैसे से जनता की सुविधा के लिए एम्बुलेंसें खरीदी गई थीं। लेकिन विधायकों ने वाहवाही तो खूब लूटी, अब जब गाड़ियां कबाड़ बन गईं तो कोई पूछने वाला नहीं। प्रशासन भी आंख मूंदे बैठा है। हमारी मांग है कि सभी एम्बुलेंसों की मरम्मत कराकर जल्द चालू किया जाए ।
उन्होंने आगे कहा कि यह मामला सिर्फ लापरवाही नहीं बल्कि जनता के साथ विश्वासघात है। विधायक निधि से दिए गए वाहनों की निगरानी खुद जनप्रतिनिधियों को करनी चाहिए थी। अगर वे जनता की समस्याओं को लेकर इतने ही गंभीर होते, तो आज मरीजों को एम्बुलेंस के इंतजार में तड़पना नहीं पड़ता।
मरीजों की हालत पर किसी की नजर नहीं
गांवों से शहर तक मरीजों को आज भी एम्बुलेंस के इंतजार में घंटों खड़ा रहना पड़ता है। कई बार 108 सेवा देर से पहुंचती है और गंभीर मरीजों की जान पर बन आती है। लोगों का कहना है कि विधायक और अधिकारी हर साल विकास योजनाओं का ढिंढोरा पीटते हैं, लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं की वास्तविकता यही है कि करोड़ों की गाड़ियां अस्पताल के कोनों में सड़ रही हैं।
जनता पूछ रही कब जवाब देंगे जनप्रतिनिधि?
उमरिया जिले की यह तस्वीर सिर्फ एक स्वास्थ्य व्यवस्था की खामी नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की नाकामी दिखाती है। जनता पूछ रही है कि अगर 20-20 लाख की एम्बुलेंसें चार साल में ही कबाड़ बन जाएं, तो इसका जिम्मेदार कौन है? विधायक निधि से खरीदे जाने का मतलब क्या सिर्फ फोटो खिंचवाना था?
जनता चाहती है कि जिला प्रशासन और विधायक दोनों इस मुद्दे पर जवाब दें। आखिर किसकी लापरवाही से जनता के हक की गाड़ियां बेकार हो गईं?
प्रशासन को करनी चाहिए जांच
यह मामला गंभीर जांच का विषय है। जिला प्रशासन को चाहिए कि इन सभी एम्बुलेंसों की तकनीकी जांच कराए और यह पता लगाए कि रखरखाव क्यों नहीं हुआ। साथ ही, जिन विधायकों के क्षेत्र में ये गाड़ियां दी गई थीं, उनसे भी जवाब लिया जाए कि उन्होंने इतने वर्षों में एक बार भी इन वाहनों की स्थिति जानने की कोशिश क्यों नहीं की। विधायक निधि जनता के पैसे से चलती है, और जनता को ही उसका फायदा नहीं मिला यह किसी भी लोकतंत्र के लिए शर्म की बात है।
