Tipu sultan : “अगर मिल जाते ज़मान शाह और टीपू सुल्तान, तो 224 साल पहले ही भारत से खत्म हो जाता अंग्रेज़ों का राज!”
Tipu sultan : सन् 1797 में भारत की आज़ादी का इतिहास उस मोड़ पर था, जहां अंग्रेज़ों को जड़ से उखाड़ा जा सकता था। उस समय दक्षिण में अंग्रेज़ों के सबसे बड़े दुश्मन टीपू सुल्तान ने अफगान सम्राट ज़मान शाह दुर्रानी को एक गुप्त संदेश भेजा था। प्रस्ताव था — भारत से अंग्रेज़ों को खदेड़ने के लिए अफगान और मैसूर की साझा फौज गठित की जाए। यह एक ऐसा मोर्चा बन सकता था, जिससे ब्रिटिश हुकूमत की जड़ें हिल जातीं।
ज़मान शाह, जो अहमद शाह अब्दाली के पोते थे, उस समय पंजाब के रास्ते भारत में घुसपैठ कर रहे थे। अंग्रेज़ी खेमे में खौफ का माहौल था। इतिहासकार जॉर्ज डेवरेक्स ओसवेल और सर अल्फ्रेड लायल लिखते हैं कि अफ़गान सेना के आगमन से पूरा उत्तर भारत दहल उठा था। अवध जैसे राज्य निष्क्रिय थे, और मुसलमान बड़ी संख्या में दुर्रानी के साथ खड़े होने को तैयार थे।
लंदन इलस्ट्रेटेड में प्रकाशित 1897 की एक पेंटिंग इस ऐतिहासिक समय को दर्शाती है, जिसमें टीपू सुल्तान अपनी पिता हैदर अली की फौज के एक हिस्से को नेतृत्व देते हुए अंग्रेज़ों पर हमला करते नज़र आते हैं।
लेकिन किस्मत ने करवट बदली। 1798 में फारस (ईरान) ने अफगानिस्तान के पश्चिमी हिस्सों पर हमला कर दिया। ज़मान शाह को भारत छोड़कर तत्काल अपने प्रांतों की रक्षा में लौटना पड़ा। इतिहासकार मानते हैं कि अगर यह हमला न हुआ होता और ज़मान शाह-टीपू सुल्तान का गठबंधन बन गया होता, तो भारत को 224 साल पहले ही अंग्रेज़ों से आज़ादी मिल जाती।
यह घटना आज भी इतिहास के पन्नों में “एक अद्वितीय लेकिन अधूरी क्रांति” के रूप में दर्ज है।