गुलामी की जंजीरों में बंधा था “human computer” थॉमस फुलर, जिसने मानसिक गणना से दुनिया को किया हैरान
human computer: 18वीं सदी का एक ऐसा गुलाम, जिसने अपने अद्भुत दिमाग से दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि रंगभेद और गुलामी की प्रथा सिर्फ मानवता पर कलंक है। उसका नाम था थॉमस फुलर, जिसे लोग “वर्जीनिया कैल्कुलेटर” के नाम से जानते थे।
फुलर का जन्म लगभग 1710 में पश्चिम अफ्रीका के तट पर हुआ था। मात्र 14 साल की उम्र में ही वह गुलामी की भयावह जंजीरों में कैद हो गया और 1724 में उसे अमेरिका लाकर वर्जीनिया के अलेक्जेंड्रिया के पास कॉक्स परिवार को बेच दिया गया। पढ़ना-लिखना कभी नहीं सीख पाए, लेकिन गणित की मानसिक गणना में उनकी प्रतिभा अद्वितीय थी।
हैरान कर देने वाली गणना
human computer : पेंसिलवेनिया के दो व्यक्ति विलियम हार्थशॉर्न और सैमुअल कोट्स ने एक बार उनकी क्षमता की परीक्षा ली। उन्होंने पूछा — डेढ़ साल में कितने सेकंड होते हैं? फुलर ने बिना कागज-कलम के मात्र दो मिनट में जवाब दिया – 47,304,000 सेकंड।
फिर पूछा गया — कोई व्यक्ति 70 साल, 17 दिन और 12 घंटे जिए तो उसने कितने सेकंड देखे होंगे? फुलर ने चंद सेकंड में उत्तर दिया – 2,210,500,800 सेकंड। जब गणना करने वाले विद्वान ने गलती से उनके आंकड़े को गलत कहा, तो फुलर ने तुरंत सुधारते हुए कहा — “स्टॉप मासा, आपने लीप ईयर भूल गए।” बाद में यह साबित हुआ कि उनका उत्तर बिल्कुल सटीक था।
प्रतिभा और विनम्रता का मेल
फुलर की चतुराई उनके जवाबों में झलकती थी। जब किसी ने अफसोस जताया कि उन्हें शिक्षा नहीं मिली, तो उन्होंने सहजता से कहा — “नहीं मासा, अच्छा हुआ कि मैं पढ़ा-लिखा नहीं हूँ, क्योंकि कई पढ़े-लिखे लोग भी बड़े मूर्ख होते हैं।”
दासप्रथा के खिलाफ जीवित सबूत
उनकी मानसिक क्षमता इतनी विलक्षण थी कि अमेरिकी चिकित्सक और दासप्रथा विरोधी डॉ. बेंजामिन रश ने फुलर को उदाहरण बनाकर यह सिद्ध किया कि अफ्रीकी मूल के दास भी किसी भी श्वेत विद्वान से कम नहीं। यह उस दौर की गहरी नस्लीय मानसिकता पर करारा प्रहार था।
विदाई पर अखबारों ने जताया शोक
1790 में करीब 80 साल की उम्र में जब थॉमस फुलर का निधन हुआ, तो अमेरिकी अखबारों ने लिखा — “अगर उन्हें न्यूटन जैसा अवसर मिलता, तो उनका मस्तिष्क दुनिया बदल देता।”
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