Indian history:अंग्रेज़ों के जुल्म के खिलाफ खड़े हुए पुणे के चापेकर बंधु, 1896 में दी गई थी फांसी
Indian history : ब्रिटिश हुकूमत के जुल्म और अत्याचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज़ बुलंद करने वालों में पुणे के चापेकर बंधुओं का नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। 1896-97 के प्लेग महामारी के समय अंग्रेज़ों ने जनता के साथ जो अमानवीय बर्ताव किया, उसने पूरे महाराष्ट्र को आक्रोशित कर दिया। इसी दौर में चापेकर बंधुओं ने अपने साहस और बलिदान से स्वतंत्रता की मशाल प्रज्वलित की।
दरअसल, 1896 में जब पुणे में प्लेग फैला तो ब्रिटिश प्रशासन ने इसे नियंत्रित करने के नाम पर भारतीयों की गरिमा और संस्कृति का खुलेआम अपमान किया। घरों में जबरन तलाशी, महिलाओं का अपमानजनक ढंग से निरीक्षण और धार्मिक स्थलों की बेअदबी जैसी घटनाओं ने लोगों को आक्रोशित कर दिया। इस अत्याचार के खिलाफ डामोदर हरि चापेकर, उनके छोटे भाई बालकृष्ण हरि और वासुदेव हरि चापेकर ने आवाज़ उठाई।
Indian history : 22 जून 1897 को महारानी विक्टोरिया के डायमंड जुबली समारोह के दौरान चापेकर बंधुओं ने पुणे के प्लेग कमिश्नर वाल्टर चार्ल्स रैंड और उनके सैन्य सहयोगी लेफ्टिनेंट आयर्स्ट की गोली मारकर हत्या कर दी। रैंड तुरंत घायल हो गया और कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई, जबकि आयर्स्ट मौके पर ही ढेर हो गया। यह घटना ब्रिटिश सत्ता के लिए बड़ा झटका थी।
अंग्रेज़ हुकूमत ने इस कार्रवाई को बगावत करार देते हुए चापेकर भाइयों को गिरफ्तार कर लिया। मुकदमे के बाद 18 अप्रैल 1898 को डामोदर हरि चापेकर को फांसी दे दी गई। इसके बाद उनके छोटे भाई वासुदेव हरि को 8 मई 1899, सहयोगी माधव विनायक रानाडे को 10 मई 1899 और अंततः बालकृष्ण हरि चापेकर को 12 मई 1899 को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
चापेकर बंधुओं ने महज 20वीं सदी की शुरुआत में ही अंग्रेज़ों को साफ संदेश दिया था कि भारतीय गुलामी स्वीकार करने वाले नहीं हैं। उन्होंने बलिदान देकर यह दिखा दिया कि स्वतंत्रता केवल अहिंसक आंदोलन से नहीं, बल्कि क्रांतिकारी संघर्ष से भी संभव है।
आज उनकी तस्वीरें और कहानियां फिर से सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं। ये तस्वीरें हमें याद दिलाती हैं कि आज़ादी की कीमत कितनी भारी थी और किन वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर कर हमें गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराया।
चापेकर बंधुओं का बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत है। उन्होंने दिखा दिया कि जब अन्याय असहनीय हो जाए, तो उसका प्रतिकार करना ही सच्चा धर्म है। यही कारण है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका नाम अमर हो चुका है।