Indian history:केरल की परंपरागत मेहनत से आधुनिक दालचीनी उत्पादन तक
Indian history : 1921 के केरल की तस्वीर हमें उस दौर की याद दिलाती है जब महिलाएं हाथों से दालचीनी की छाल निकालने के कठिन कार्य में जुटी रहती थीं। उस समय दालचीनी मुख्य रूप से केरल, तमिलनाडु और श्रीलंका जैसे इलाकों में सबसे अधिक पाई जाती थी। उत्पादन की प्रक्रिया पूरी तरह श्रम-प्रधान थी, पेड़ों की छाल को सावधानीपूर्वक काटकर सुखाया जाता और फिर उससे मसाले के रूप में दालचीनी तैयार होती।
बीसवीं सदी की शुरुआत में यह कार्य ग्रामीण महिलाओं के श्रम और उनके कौशल पर ही निर्भर था। हाथ से छाल निकालना, उसे धूप में सुखाना और फिर बाजार तक पहुंचाना, यही पूरी प्रक्रिया थी। यही वजह थी कि दालचीनी उस समय बेहद कीमती मानी जाती थी।
आज तकनीकी विकास ने इस काम को आसान बना दिया है। आधुनिक मशीनों से छाल की कटाई, सफाई और प्रोसेसिंग की जाती है, जिससे समय की बचत होती है और उत्पादन क्षमता कई गुना बढ़ जाती है। फिर भी, पारंपरिक तरीकों से निकली दालचीनी का स्वाद और सुगंध आज भी बेजोड़ मानी जाती है।
भारत में अब भी केरल और तमिलनाडु दालचीनी उत्पादन के अहम केंद्र हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर श्रीलंका और इंडोनेशिया सबसे बड़े निर्यातक बने हुए हैं। बदलते दौर में भी दालचीनी की महक हमें अतीत से जोड़ती है और यह मसाला भारतीय रसोई की शान बना हुआ है।
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