Indian history:रेगिस्तान के बीच सुनहरी शान, भाटी राजपूतों की वीरता और स्थापत्य कला का जीवंत प्रतीक ‘जैसलमेर दुर्ग’
Indian history : राजस्थान की धरती अपने किलों और महलों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, लेकिन इनमें से सबसे अनोखा और भव्य किला है जैसलमेर दुर्ग, जिसे ‘सोनार किला’ के नाम से भी जाना जाता है। यह दुर्ग केवल राजपूती शौर्य और वीरता का गवाह ही नहीं बल्कि अद्भुत स्थापत्य कला का जीवंत उदाहरण भी है।
जैसलमेर दुर्ग का निर्माण 1156 ईस्वी में भाटी राजपूत शासक महारावल जैसल ने करवाया था। त्रिकूट पहाड़ी पर पीले बलुआ पत्थरों से बने इस किले की भव्यता सूर्य की किरणों के साथ सुनहरी चमक बिखेरती है, जिसके कारण इसे ‘सोनार किला’ कहा जाता है। यह किला न केवल युद्ध और राजनीति का केंद्र रहा बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थान रखता था, क्योंकि यह प्राचीन रेशम मार्ग का अहम पड़ाव हुआ करता था।
भाटी राजपूतों की वीरता की कहानियाँ इस किले की दीवारों और प्राचीरों में आज भी गूंजती हैं। दुर्ग ने कई आक्रमणों का सामना किया, लेकिन इसकी मजबूत दीवारें और सैनिकों की अदम्य साहसिकता ने इसे बार-बार सुरक्षित रखा। दुर्ग के भीतर बने भव्य राजमहल, intricately नक्काशीदार जैन मंदिर और हवेलियाँ आज भी स्थापत्य कला की उत्कृष्टता का प्रमाण देती हैं। पत्थरों पर की गई महीन नक्काशी, झरोखे और बालकनियाँ देखने वालों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं।
विशेष बात यह है कि यह दुनिया का एकमात्र ‘जीवित किला’ माना जाता है, क्योंकि आज भी इसके अंदर हजारों लोग रहते हैं। संकरी गलियों में घूमते हुए पर्यटक यहां की प्राचीन परंपराओं और आधुनिक जीवन का अनोखा संगम महसूस कर सकते हैं। यही कारण है कि यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया है।
Indian history : आज जैसलमेर दुर्ग सिर्फ राजस्थान का गौरव ही नहीं बल्कि पूरे भारत की शौर्यगाथा और कला का अद्भुत प्रतीक है। यह किला हर साल लाखों सैलानियों को अपनी ओर आकर्षित करता है और राजपूती संस्कृति की सुनहरी झलक दुनिया के सामने प्रस्तुत करता है।
संक्षेप में, जैसलमेर दुर्ग भाटी राजपूतों के साहस, उनकी जीवन शैली और अद्वितीय स्थापत्य कौशल का ऐसा प्रतीक है जो रेगिस्तान की रेत के बीच सुनहरी चमक बिखेरते हुए हमेशा इतिहास को जीवित रखेगा।
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