Sidhi corruption:”जब सचिव बने व्यापारी, जीआरएस बने फर्म – कुसमी की पंचायतों में भ्रष्टाचार का नया ‘स्टार्टअप मॉडल’!”
रिपोर्ट – अमित श्रीवास्तव, सीधी
Sidhi corruption : कुसमी जनपद की पंचायतों में भ्रष्टाचार अब सरकारी व्यवस्था से बढ़कर एक “बिज़नेस मॉडल” का रूप ले चुका है। यहां अधिकारी और सचिव मानो “सरकारी सेवा” नहीं, बल्कि “स्वयं सहायता समूह” चलाने के मिशन पर हैं, फर्क बस इतना है कि यहां मुनाफा जनता के हक़ का है और निवेश शासन का।
ताज़ा मामला ग्राम पंचायत वस्तुआ का है, जहां पंचायत सचिव ने अपने ही जीआरएस को फर्म बना दिया! जी हां, जिनका काम था पंचायत में तकनीकी सहयोग देना, उन्हें सचिव ने व्यापारी घोषित कर दिया और ₹15,000 की राशि सीधे उनके खाते में डाल दी। अब यह समझ से परे है कि सचिव ने यह रिश्ता ‘नौकरी का’ बनाया था या ‘बिज़नेस पार्टनरशिप’ का!
Sidhi corruption : नियम तो साफ कहते हैं कि भुगतान उसी फर्म को होना चाहिए, जहां से सामग्री खरीदी गई हो। लेकिन यहां सचिव का तर्क बड़ा “क्रिएटिव” बताया जा रहा है — “जब अपना आदमी है तो ट्रांसपेरेंसी की गारंटी तो पक्की हुई न!”
यहां तक कि इस ‘पंचायती स्टार्टअप’ की खास बात यह है कि 9 वेण्डरों के सभी बिलों का क्रमांक एक ही — 15 निकला! ग्रामीणों ने जब यह संयोग देखा तो माथा पकड़ लिया। अब यह तो या तो कोई दिव्य संयोग है या सचिव का “कैल्क्युलेटेड कॉइनसिडेंस”।
इन बिलों में जीआरएस संतोष पाठक को ₹15,000, नवीन तिवारी को ₹32,560, बंटी मोबाइल गिफ्ट स्पोर्ट्स को ₹20,000, अर्पिता ट्रेडर्स को ₹1,00,000 और गांधी इंटरप्राइजेज को ₹46,730 समेत कुल ₹2,60,970 का भुगतान हुआ है। ग्रामीण पूछ रहे हैं — “इतने सारे बिल एक नंबर से कैसे निकल आए सचिव जी? क्या प्रिंटर में भी आपकी हिस्सेदारी है?”
पंचायतों की हालत ऐसी हो चुकी है कि फाइलों से ज़्यादा पैसे घूम रहे हैं और निगरानी सिर्फ नोटिसों तक सीमित है। हर घोटाले के बाद अधिकारियों का वही पुराना राग — “जांच की जाएगी।” फिर जांच शुरू होती है, नोटिस निकलता है, और कुछ दिनों बाद मामला ऐसे गायब होता है जैसे पंचायत के खाते से पैसे।
Sidhi corruption : कुसमी की यह कहानी एक मिसाल है कि कैसे “विकास” के नाम पर सिस्टम ने “विकास पुरुषों” की एक नई नस्ल पैदा कर दी है — जो न ठेकेदार हैं, न व्यापारी, पर दोनों के बीच की वो महीन रेखा हैं जिसे जनता “भ्रष्टाचार” कहती है।
कुसमी में अब लोग मजाक में कहते हैं —
“यहां सचिव ही सरकार है, बिल ही बयान हैं और जांच तो बस एक रस्म है!”
