Sidhi news : सीधी में शिक्षा का चीरहरण: सेमरिया स्कूल में शिक्षक-प्राचार्य की मिलीभगत से बच्चों की किताबें कबाड़ में बेचीं
सीधी, मध्यप्रदेश।
Sidhi news : राज्य सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में लाख कोशिशों के बावजूद जमीनी स्तर पर हालात शर्मनाक होते जा रहे हैं। इसकी बानगी रविवार दोपहर उस वक्त देखने को मिली जब सीधी जिले के सेमरिया सीएम राइस स्कूल में बच्चों को बांटने के लिए आई सरकारी किताबें सैकड़ों की संख्या में कबाड़ में बिकती पाई गईं। इस घिनौने कृत्य में स्कूल के शिक्षक कृष्ण चंद्र मिश्रा और प्रभारी प्राचार्य अनिल मिश्रा की मिलीभगत सामने आई है, जिसने पूरे जिले को शर्मसार कर दिया है।
स्थानीय ग्रामीणों ने दोपहर करीब 3:30 बजे एक ऑटो में बोरी भरकर ले जाई जा रही किताबों को रोका। पूछताछ में यह खुलासा हुआ कि ये किताबें सरकारी स्कूल की थीं जिन्हें शिक्षक मिश्रा ने कबाड़ी कालू बंसल को ₹10 प्रति किलो के हिसाब से रद्दी बताकर बेच दिया था। जब ग्रामीणों ने विरोध किया तो किताबों सहित ऑटो को थाने ले जाया गया। मौके पर बनी वीडियो में किताबों की स्थिति स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी।
जब पत्रकारों ने इस मामले में प्रभारी प्राचार्य अनिल मिश्रा से बात की, तो उन्होंने शुरुआत में बचाव करते हुए इन किताबों को “प्रोजेक्ट वर्क” बताया। लेकिन ग्रामीणों द्वारा दिखाए गए वीडियो और सबूतों के सामने उनका यह तर्क जल्द ही दम तोड़ गया। सवाल यह उठता है कि यदि किताबें अनुपयोगी थीं तो उन्हें नियमानुसार शासन को लौटाना क्यों नहीं उचित समझा गया?
Sidhi news : शिक्षा के नाम पर विश्वासघात
समाजसेवी प्रभात वर्मा ने इस मामले को ‘शिक्षा व्यवस्था की बुनियाद पर हमला’ बताया। उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है जब बच्चों की किताबें बाजार में या कबाड़ी के यहां बिकती पाई गई हैं। गरीब परिवारों के बच्चे जिन्हें सरकार द्वारा मुफ्त में किताबें देने का प्रावधान है, उन्हें मजबूरी में बाजार से ऊंची कीमतों पर खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ता है। यह सीधे तौर पर शिक्षा के अधिकार का हनन है।
प्रशासन की कार्रवाई
सेमरिया थाना प्रभारी केदार परौहा ने पुष्टि की कि तहसीलदार के निर्देश पर किताबों से भरी गाड़ी को थाने में जब्त कर लिया गया है। मामले की जांच शुरू हो गई है और दोषी पाए जाने पर सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी। लेकिन सवाल अब इस बात पर उठता है कि क्या सिर्फ एक शिक्षक पर दोष मढ़ देना ही काफी होगा या फिर प्राचार्य की भूमिका की भी निष्पक्ष जांच होगी?
यह घटना न केवल बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है बल्कि सरकारी योजनाओं को पलीता लगाने जैसा कृत्य भी है। जब शिक्षा जैसे पवित्र कार्य में लगे शिक्षक और प्राचार्य ही भ्रष्टाचार में लिप्त हों, तो फिर बच्चों को बेहतर भविष्य की उम्मीद कहां से की जा सकती है? यह सिर्फ एक स्कूल की बात नहीं, बल्कि एक बड़े सिस्टमिक फेल्योर की चेतावनी है — जिसे नजरअंदाज करना अब और मुमकिन नहीं।