Bandhavghar News: बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में देसी तकनीक से बुझेगी वन्य प्राणियों की प्यास
उमरिया
मार्च की शुरुआत के साथ ही बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने वन्य प्राणियों के लिए पानी की व्यवस्था के प्रयास तेज कर दिए हैं। इस बार टाइगर रिजर्व प्रबंधन ने देसी तकनीक का सहारा लेते हुए जल संकट से जूझ रहे इलाकों में प्राकृतिक जल स्रोतों के पास खुदाई कर सौसर बनाने की योजना बनाई है। इसका मकसद है कि जंगल के जल स्रोतों के सूखने के बावजूद पेड़ों की जड़ों के पास मौजूद भूगर्भीय पानी तक पहुंचा जाए, जिससे वन्य प्राणी बिना किसी रुकावट के अपनी प्यास बुझा सकें।
पेड़ों की जड़ों के पास मिलेगा ठंडा पानी
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा ने बताया कि कुछ पेड़ जैसे जामुन, बरगद, अर्जुन (कहुआ) आदि के पास भूजल का स्तर ऊंचा रहता है। गर्मी के दिनों में जब आसपास के नाले और जल स्रोत सूख जाते हैं, तब भी इन पेड़ों की जड़ों के पास कुछ फीट की खुदाई करने पर पानी मिल जाता है। इस बार इन इलाकों को चिन्हित कर 5 से 8 फीट गहरे गड्ढे (सौसर) बनाए जाएंगे, जिससे पानी का प्राकृतिक स्तर बना रहेगा और वन्य प्राणी ठंडक के साथ अपनी प्यास बुझा सकेंगे।
कंक्रीट की टंकियों की जगह प्राकृतिक जल स्रोतों पर जोर
प्रबंधन ने साफ कर दिया है कि इस बार कंक्रीट या सीमेंट की टंकियों पर निर्भरता कम होगी। इन टंकियों में अक्सर पानी भरने के लिए टैंकर पर निर्भर रहना पड़ता है, जो कभी-कभी खराब भी हो जाते हैं, जिससे वन्य प्राणी पानी के लिए तरसते हैं। इसके उलट, प्राकृतिक जल स्रोतों के पास सौसर बनाकर पानी का इंतजाम करना ज्यादा टिकाऊ और भरोसेमंद होगा।
प्राकृतिक जल स्रोतों की निगरानी और सौर पंप से होगी व्यवस्था
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व 1536 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जहां चरणगंगा, उमरार, जनाढ, भदार, हलफल और सोन नदियों के अलावा 15 तालाब और करीब 284 पोखरनुमा जलकुंड मौजूद हैं। उप संचालक पीके वर्मा ने बताया कि 9 रेंज की 139 बीट में गश्ती दल जल स्रोतों की लगातार निगरानी करेगा। यदि पानी का स्तर कम होता है, तो 72 घंटे के भीतर तीन टैंकरों से जल स्रोतों को रिचार्ज किया जाएगा। साथ ही, 25 से ज्यादा सौर ऊर्जा से चलने वाले पंपों से भी तालाब और पोखरों में पानी भरा जाएगा।
बाघों की दहाड़ के लिए मशहूर है बांधवगढ़
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व सिर्फ मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश-विदेश में अपनी बाघों की मौजूदगी के लिए मशहूर है। यहां 200 से ज्यादा बाघ, 60 से 70 हाथी, तेंदुआ, भालू, हिरण, बायसन, चीतल और कई तरह के पक्षी समेत अन्य वन्य प्राणी रहते हैं। गर्मी के मौसम में इनके लिए पानी का इंतजाम सबसे बड़ी चुनौती होती है।
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व ने देसी तकनीक को अपनाकर यह सुनिश्चित करने की तैयारी कर ली है कि जंगल का कोई भी वन्य प्राणी इस गर्मी में प्यासा न रहे। अब देखना होगा कि यह प्राकृतिक जल प्रबंधन कितना कारगर साबित होता है।