Hiroshima 1945 : हिरोशिमा 1945 : जब इंसानियत राख हुई,आज के युद्धों के लिए एक चेतावनी
Hiroshima 1945 : 1945 का साल दुनिया के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है। जापान का शहर हिरोशिमा, 6 अगस्त की सुबह, एक अमेरिकी परमाणु बम के कारण चंद सेकंडों में राख में तब्दील हो गया। इस ऐतिहासिक तस्वीर में वह तबाही साफ दिखती है — जले हुए वाहन, बर्बाद इमारतें और वीरान धरती। यह सिर्फ एक शहर नहीं जला था, बल्कि इंसानियत, सभ्यता और शांति की उम्मीदें भी उस आग में भस्म हो गई थीं।
हिरोशिमा पर गिराए गए ‘लिटिल बॉय’ नामक परमाणु बम ने करीब 80,000 लोगों की तुरंत जान ले ली, और हजारों लोग बाद में रेडिएशन की वजह से मारे गए। इस त्रासदी ने दुनिया को पहली बार दिखाया कि विज्ञान जब नियंत्रण से बाहर होता है, तो वह सृजन नहीं, विनाश का कारण बन जाता है।
आज के संदर्भ में यह तस्वीर और भी ज्यादा प्रासंगिक हो जाती है। आज भी दुनिया के कई हिस्सों में युद्ध हो रहे हैं चाहे वह रूस-यूक्रेन संघर्ष हो, गाजा में बमबारी हो या एशिया में बढ़ते सैन्य तनाव। बड़ी-बड़ी ताकतें एक बार फिर हथियारों की होड़ में जुटी हैं, और दुनिया ‘शक्ति प्रदर्शन’ के नाम पर विनाश की ओर बढ़ रही है।
Hiroshima 1945 : हिरोशिमा की राख हमें याद दिलाती है कि युद्ध का कोई विजेता नहीं होता। इसमें सिर्फ इंसान हारता है उसकी जिंदगी, उसकी संस्कृति और उसका भविष्य। आज जबकि तकनीक और हथियार पहले से कहीं अधिक घातक हो चुके हैं, हिरोशिमा की यह तस्वीर हमें चेतावनी देती है कि अगर हमने अब भी शांति का रास्ता नहीं चुना, तो भविष्य में ऐसी तस्वीरें सामान्य हो जाएंगी।
इसलिए यह ज़रूरी है कि दुनिया के नेता इतिहास से सबक लें, कूटनीति को प्राथमिकता दें और हर कीमत पर परमाणु हथियारों का प्रयोग रोका जाए। वरना अगला हिरोशिमा किसी और शहर का नाम बन सकता है और फिर पछताने का कोई मौका नहीं बचेगा।
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