Mp news: पत्नी को जिंदा जलाने वाले पति की उम्र कैद की सजा पर रोक, हाई कोर्ट ने पलटा सत्र न्यायालय का फैसला
Mp news : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट की जबलपुर प्रिंसिपल बेंच के न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की डबल बैंच ने अहम फैसला देते हुये महिला की मृत्युपूर्व कथन को संदिग्ध माना और सत्र न्यायालय का वह फैसला पलट दिया है, जिसमें पत्नी को जिंदा जलाने का दोषी ठहराते हुये पति को उम्रकैद की सजा से दंड़ित किया गया था। हाई कोर्ट की डबल बैंच ने अपने आदेश में साफ कहा है कि संदिग्ध मृत्युपूर्व कथन, सजा का आधार नहीं हो सकता।
पति पर लगा पत्नी को जिन्दा जलाने का आरोप
Mp news : सागर निवासी पप्पू उर्फ माखन साहू पर अपनी पत्नी को जिंदा जलाकर मारने का आरोप लगा था। पप्पू शराब पीने का आदि है और घटना दिनॉक को उसने पत्नी से शराब पीने के लिये रूपयें मांगे, लेकिन पत्नी ने जब रूपये देने से इंनकार किया तो पप्पू आग बबूला हो गया और दोस्त बल्लू उर्फ बलराम के साथ मिलकर पत्नी पर मिट्टी का तेल डालकर आग लगाकर जिंदा जला दिया।
आग में 90 फीसदी जली पत्नी का अस्पताल में इलाज के दौरान निधन हो गया। जिस पर पुलिस ने अपराध दर्ज कर पति पप्पू और दोस्त बल्लू को हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया, जहॉ से जिला सत्र न्यायालय ने दोनों आरोपियों को हत्या का दोषी ठहराते हुये उम्रकैद की सजा से दंड़ित किया।
मृत्युपूर्व बयान में अंगूठा, पीएम में अंगूठे का निशान नहीं
हाईकोर्ट में याचिकाकर्ता पप्पू उर्फ माखन साहू और उसके दोस्त बल्लू उर्फ बलराम की ओर से जिला कोर्ट से उम्रकैद की सजा को चुनौती दी गई। हाईकोर्ट में बचाव पक्ष के वकील ने मृृत्युपूर्व बयान की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये। सत्र न्यायालय के फैसले को चुनौती वाली हाई कोर्ट में दायर अपील में याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि आग में 90 फीसदी जली महिला के मृृत्युपूर्व बयान जिस पेपर पर लिये गये, उसमें महिला के अंगूठे का निशान लगा था।
महिला की मृत्यु और पीएम के बीच केवल 9 घंटे का वक्त गुजरा था, ऐसे में पीएम रिपोर्ट में महिला के अंगूठा में किसी भी तरह की स्याही के निशान नहीं मिले। इसके साथ ही पीएम रिपोर्ट में महिला के दोनांे हाथ बुरी तरह जले पाए गये, जिससे मृत्युपूर्व बयान और मृतिका के हस्ताक्षर को हाईकोर्ट ने संदिग्ध माना।
बेटी का धारा-164 में दिया बयान भी संदेहास्पद
इसी तरह मृतिका की बेटी के धारा-164 के बयान को भी संदेहास्पद ठहराया गया, क्योंकि घटना के एक माह बाद बेटी के बयान दर्ज किए गए थे। बेटी के बयान भी उस दौरान दर्ज किये गये जब वह नाना-नानी के घर अर्थात मृतिका के मायके पक्ष के पास थी, जिस पर सवाल उठाया गया कि मृतिका के मायके पक्ष के बहकावे में आकर बेटी ने मॉ के पक्ष में बयान देते हुये पिता पर हत्या का आरोप लगाया, जिससे जिला सत्र न्यायालय ने उम्रकैद की सजा सुनाई।
याचिकाकर्ता के वकील की दलील और साक्ष्यों को अहम मानते हुये हाई कोर्ट ने मृत्युपूर्व बयान को संदिग्ध मानते हुए जिला कोर्ट के उम्रकैद की सजा को पलट दिया और अपीलकर्ताओं को दोषमुक्त करने का आदेश पारित कर दिया।