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MP News: सिर्फ़ एक काग़ज़ बनकर रह गया सांसद का पत्र AIIMS प्रबंधन की बेरुखी ने तोड़ी एक पिता की उम्मीद, बेटी की हालत नाजुक

Tapas Gupta

By Tapas Gupta

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MP News: सिर्फ़ एक काग़ज़ बनकर रह गया सांसद का पत्र AIIMS प्रबंधन की बेरुखी ने तोड़ी एक पिता की उम्मीद, बेटी की हालत नाजुक

उमरिया तपस गुप्ता (7999276090)

देश की सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित स्वास्थ्य संस्था AIIMS (एम्स) का नाम सुनते ही लोगों को भरोसा होता है कि यहां उन्हें बेहतरीन इलाज मिलेगा वो भी समय पर। लेकिन शहडोल निवासी प्रमोद कुमार मिश्रा के लिए यह भरोसा अब सवालों के घेरे में है।

उनकी 8 वर्षीय बेटी वर्णिका मिश्रा पिछले 8 महीनों से किडनी, लिवर और दिल की गंभीर बीमारियों से जूझ रही है। बच्ची की दिल की पंपिंग क्षमता (LVEF) सिर्फ 20% रह गई है, लिवर सूज चुका है और किडनी लगभग काम करना बंद कर चुकी है। हालात इतने नाजुक हैं कि बिना तत्काल इलाज के कोई अनहोनी हो सकती है।

प्रमोद मिश्रा ने एम्स दिल्ली में इलाज के लिए 1 जुलाई की तारीख पर ऑनलाइन अपॉइंटमेंट बुक करवा लिया। लेकिन बच्ची की बिगड़ती हालत को देखकर उन्होंने समय से पहले इलाज की गुहार लगाई और शहडोल की सांसद श्रीमती हिमाद्री सिंह से संपर्क किया। सांसद महोदय ने AIIMS निदेशक को एक सिफारिशी पत्र लिखकर तत्काल चिकित्सा की व्यवस्था की अपील की। लेकिन जो हुआ, उसने इस टूट चुके पिता को और तोड़ दिया। वह बताते हैं,

“मैं वह पत्र लेकर एम्स के अलग-अलग काउंटरों के चक्कर काटता रहा, 6 घंटे तक इधर-उधर भटकता रहा… और आखिर में जो अपॉइंटमेंट मिला, वो 14 अक्टूबर की तारीख थी! चार महीने बाद।

यह तब और चौंकाने वाला हो गया जब उन्होंने पाया कि AIIMS की वेबसाइट पर अभी भी 10 जुलाई के स्लॉट खाली हैं! फिर सवाल उठता है ।आखिर क्यों नहीं सुनी गई उनकी बात? क्यों सांसद का पत्र भी एक आम कागज़ जैसा पढ़ा गया?

प्रमोद मिश्रा कहते हैं,“मुझे सांसद से पूरा सहयोग मिला, उन्होंने उसी रात लेटर दे दिया। लेकिन एम्स के सिस्टम ने उस पत्र को भी गंभीरता से नहीं लिया। ऐसा लगता है जैसे अब इंसान नहीं, सिर्फ नंबर और फॉर्म बचे हैं इस सिस्टम में।”

उनकी आपबीती सिर्फ एक पिता का दर्द नहीं, बल्कि उस पूरे सिस्टम की संवेदनहीनता का चेहरा है। प्रमोद मिश्रा का कहना है कि वे VIP ट्रीटमेंट नहीं चाहते, सिर्फ वक़्त पर इलाज चाहते हैं।

आर्थिक स्थिति पहले ही खराब हो चुकी है। महीनों की दवाइयां, डायलिसिस, सफर, जांचें और रोज़मर्रा के खर्चों ने कमर तोड़ दी है।“मैं कोई एहसान नहीं मांग रहा, सिर्फ इंसानियत मांग रहा हूं,” उन्होंने कहा।

पितृ दिवस के दिन प्रमोद मिश्रा ने सोशल मीडिया पर अपनी व्यथा साझा करते हुए लिखा “मैं लड़ रहा हूं अपनी बेटी की जान के लिए। पर लगता है इस सिस्टम ने इंसान को आंकड़ों में बदल दिया है। क्या किसी को हमारी पीड़ा दिखती नहीं?”

उनकी अपील है कि इस मामले को सभी उठाएं क्योंकि यह सिर्फ उनकी बेटी का मसला नहीं है।“मैं चाहता हूं कि सांसदों को संसद में ये सवाल उठाना चाहिए कि जब उनके पत्रों की भी कोई सुनवाई नहीं है, तो आम आदमी किसके पास जाए?”

AIIMS जैसे संस्थान से संवेदनशीलता की उम्मीद की जाती है, लेकिन इस मामले में जो व्यवहार हुआ है, वो न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि पूरे हेल्थ सिस्टम की संवेदनशीलता पर सवाल उठाता है।

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मै तपस गुप्ता 9 सालों से लगातार पत्रकारिता मे सक्रिय हूं, समय पर और सटीक जानकारी उपलब्ध कराना ही मेरी पहली प्राथमिकता है। मो-7999276090

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