Ratti नाप-तौल से औषधि तक, जानिए चमत्कारी पौधे के गुण
क्या है रत्ती?
‘Ratti भर भी’ जैसे मुहावरे आपने अक्सर सुने होंगे। यह शब्द असल में रत्ती (Rosary Pea / Abrus precatorius) नामक पौधे से जुड़ा है। इसे स्थानीय भाषा में घुंघची या गुंजा भी कहा जाता है। यह पौधा पहाड़ी और मैदानी दोनों क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी फली मटर जैसी होती है, जिसमें चमकदार लाल और काले रंग के बीज होते हैं। इन्हीं बीजों को रत्ती कहा जाता है।
माप-तौल का पैमाना
प्राचीन काल में जब तराजू और मापने के आधुनिक साधन उपलब्ध नहीं थे, तब सोना और कीमती रत्न-आभूषण तौलने के लिए रत्ती के बीजों का इस्तेमाल किया जाता था।
सबसे खास बात यह है कि इन बीजों का वजन हमेशा एक समान होता है—121.5 मिलीग्राम (लगभग एक ग्राम का आठवां हिस्सा)। यही कारण है कि ‘Ratti’ शब्द धीरे-धीरे जरा-सा, थोड़ा-सा या बहुत कम के पर्याय के रूप में भाषा में प्रचलित हो गया।
पहचान और विशेषताएं
चमकीले लाल-कालों बीज इसकी सबसे बड़ी पहचान हैं।
पौधे में मटर जैसी फली लगती है।
इसके बीज सुंदर लेकिन अत्यधिक विषैले होते हैं।
बीजों की खासियत यह है कि वजन चाहे किसी भी उम्र में हो, हमेशा समान रहता है।
औषधीय उपयोग
हालांकि बीज जहरीले हैं, लेकिन तकनीकी उपचार के बाद इनका प्रयोग आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में किया जाता है।
सफेद रत्ती: इसका उपयोग कामोत्तेजक तेल बनाने में होता है।
पत्तियां: चाय बनाकर बुखार, खांसी और जुकाम में दी जाती हैं।
शहद के साथ पत्तियां: सूजन कम करने में उपयोगी।
जमैका में इसे चाय के विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाता है।
नेत्र रोगों में बीजों को ‘जेकिरिटी’ नाम से प्रयोग किया गया है।
बालों के उत्पाद: भारत में बालों की वृद्धि बढ़ाने के लिए उपयोग होता है।
जड़ें: ऐतिहासिक संदर्भ बताते हैं कि भारत में इसे कभी शराब के विकल्प के रूप में भी प्रयोग किया गया।
गठिया, ल्यूकोरिया और साइटिका जैसी बीमारियों में पौधे के विभिन्न हिस्सों का प्रयोग आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है।
सावधानी
रत्ती के बीज अत्यधिक विषैले होते हैं। बिना शोधन और तकनीकी प्रक्रिया के इनका सेवन घातक हो सकता है। इसलिए इसका उपयोग हमेशा विशेषज्ञ आयुर्वेदाचार्य या चिकित्सक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।
कुल मिलाकर, रत्ती सिर्फ भाषा में मुहावरा नहीं, बल्कि माप-तौल का प्राचीन पैमाना और औषधीय गुणों से भरपूर पौधा है।