ममान में जयसवाल , ओदरी में यादव तो घुनघुटी में वर्मा ब्रदर्स ने फैलाया रेत का अवैध कारोबार
उमरिया तपस गुप्ता (7999276090)
उमरिया जिले में रेत माफिया का साम्राज्य दिनों-दिन मजबूत होता जा रहा है। पाली थाना क्षेत्र के घुनघुटी चौकी से लेकर ओदरी और ममान तक रेत की अवैध खदानें और कारोबारियों की चकाचौंध साफ नजर आती है। ममान में जयसवाल ब्रदर्स, ओदरी में यादव ब्रदर्स और घुनघुटी में वर्मा ब्रदर्स का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। इनके कारनामों से स्थानीय ग्रामीण परेशान हैं, लेकिन इनकी पकड़ इतनी मजबूत है कि लोग खुलकर सामने आने से भी डरते हैं।
कुर्ते की आड़ में समाज सेवा और रात में अवैध कारोबार
ग्रामीणों का कहना है कि ये लोग समाज सेवा का चोला ओढ़कर राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करते हैं। दिन में समाज के हितैषी बनने का ढोंग और शाम ढलते ही रेत की काली कमाई। ट्रैक्टरों की लंबी लाइनें रात होते ही निकलने लगती हैं और रेत का कारोबार खुलेआम चलता है।
सांसद–विधायक का नाम लेकर दबाव
स्थानीय लोगों के मुताबिक, कारोबारियों का कहना है कि उनके पीछे बड़े नेताओं का हाथ है। कोई खुद को सांसद से जुड़ा बताता है तो कोई विधायक की छत्रछाया का हवाला दे कर बदनाम करते है। इस धौंस के आगे पुलिस, वन और खनिज विभाग के अधिकारी भी खामोश हो जाते हैं। सवाल यह है कि आखिर बिना राजनीतिक संरक्षण के इतना बड़ा अवैध कारोबार कैसे फल-फूल सकता है?
भाजपा कनेक्शन पर उठे सवाल
चर्चा यह भी है कि इन कारोबारियों के रिश्ते भाजपा के बड़े नेताओं से जुड़े हैं। पार्टी से निकटता का फायदा उठाकर ये लोग प्रशासन पर दबाव बनाते हैं। जब कभी कार्रवाई होती भी है, तो वह केवल दिखावे के लिए होती है। ग्रामीणों का कहना है कि राजनीतिक पकड़ के कारण ही ये लोग सालों से खुलेआम कानून को चुनौती देते आ रहे हैं।
संदिग्ध भूमिका में पुलिस और विभाग
पुलिस, वन और खनिज विभाग की भूमिका भी सवालों के घेरे में है। ट्रैक्टरों की रोजाना आवाजाही इनकी आंखों के सामने होती है, फिर भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती। ग्रामीणों का तंज है कि रेत से ज्यादा मोटा कमिशन बहता है, तभी तो ट्रैक्टरों की घरघराहट पर सबकी सुनने की ताकत खत्म हो जाती है।
खनिज अधिकारी का सफाईनामा
खनिज अधिकारी विद्याकांत तिवारी से जब इस पूरे मामले पर सवाल किया गया, तो उन्होंने दावा किया कि वह लगातार कार्रवाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कल भी मैंने कार्रवाई की थी और पिछले डेढ़ महीने में लगभग 14–15 कार्यवाही की है। मुझे अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है और मैं किसी का नाम नहीं जानता। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि कार्रवाई केवल चुनिंदा वाहनों पर होती है और बड़े कारोबारियों तक हाथ नहीं पहुंचता।
नेताओं और अधिकारियों का गठजोड़
इस अवैध कारोबार में नेताओं और अधिकारियों की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता। अगर प्रशासन ईमानदारी से कार्रवाई करता तो इतने बड़े पैमाने पर ट्रैक्टरों की लाइनें रोज नहीं लगतीं। सवाल उठता है कि आखिर अधिकारी आंखें मूंदकर क्यों बैठे रहते हैं? क्या सत्ता का दबाव इतना ज्यादा है कि ईमानदार कार्रवाई करना नामुमकिन हो गया है?
विकास की आड़ में बर्बादी
रेत का अवैध उत्खनन न केवल सरकारी राजस्व को नुकसान पहुंचा रहा है, बल्कि पर्यावरण और नदियों का अस्तित्व भी खतरे में डाल रहा है। ग्रामीण बताते हैं कि नदी की गहराई बढ़ती जा रही है, जलस्तर गिर रहा है और खेतों की उपजाऊ मिट्टी बर्बाद हो रही है। इसके बावजूद अधिकारियों और नेताओं की खामोशी चौंकाती है।
जनता के भरोसे का सौदा
ग्रामीणों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि वे अपनी आवाज उठाना चाहते हैं, लेकिन डर के कारण चुप रहते हैं। नेताओं से लेकर अधिकारियों तक सब मिले हुए हैं। हम बोलें भी तो कौन सुनेगा? यह बयान बताता है कि प्रशासनिक तंत्र में जनता का भरोसा कितना कमजोर हो चुका है।
कब तक चलेगा रेत का खेल?
रेत माफिया का यह नेटवर्क आम लोगों की जिंदगी को प्रभावित कर रहा है। ट्रैक्टरों की लगातार आवाजाही से सड़कों का बुरा हाल है। हादसे आम हो गए हैं और सरकारी खजाने को हर दिन लाखों का चूना लग रहा है। सवाल यह है कि आखिर कब तक ममान के जयसवाल, ओदरी के यादव और घुनघुटी के वर्मा ब्रदर्स जैसे नाम बेखौफ होकर कानून को चुनौती देंगे?
सरकार और प्रशासन अगर वास्तव में गंभीर है तो कार्रवाई केवल कागजों पर नहीं, जमीनी स्तर पर दिखनी चाहिए। वरना यह रेत का खेल नेताओं, अधिकारियों और माफियाओं की सांठगांठ का जीता-जागता सबूत बनकर हमेशा जनता को लहूलुहान करता रहेगा।
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