नेतागिरी की आड़ में फल-फूल रहा है रेत का अवैध कारोबार
उमरिया तपस गुप्ता (7999276090)
रेत का अवैध उत्खनन मध्यप्रदेश की सबसे बड़ी समस्या बनता जा रहा है। प्रशासन के लाख दावों और कार्रवाई के बाद भी यह कारोबार थमता नहीं दिख रहा। वजह साफ है नेतागिरी के आड़ में चल रहे इस खेल को राजनीतिक संरक्षण हासिल है। जिले पाली थाना के घुनघुटी चौकी क्षेत्र में इसका नजारा साफ-साफ देखने को मिल रहा है।
स्थानीय लोगों के मुताबिक शाम ढलते ही नदी-नालों से रेत की अवैध निकासी शुरू हो जाती है। बड़े-बड़े ट्रैक्टर और डंपर रात के अंधेरे में बिना रोक-टोक दौड़ते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि यह सब पुलिस चौकी और प्रशासन की जानकारी में होने के बावजूद चल रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि इस काम के पीछे ऐसे लोग हैं जो दिन में सफेद कुर्ते की चमक के साथ मंचों पर ईमानदारी और विकास की बात करते हैं और रात होते ही रेत माफिया का चेहरा बन जाते हैं।
नेताओं का संरक्षण
बताया जा रहा है कि घुनघुटी क्षेत्र से जुड़ी नदी-नालों से निकाली जा रही रेत पर स्थानीय प्रभावशाली नेताओं की सीधी पकड़ है। ग्रामीणों ने नाम लेकर आरोप लगाया है कि जायसवाल जी, यादव जी, बघेल जी और वर्मा जी जैसे नेताओं का संरक्षण इस पूरे नेटवर्क को मिला हुआ है। यही वजह है कि ट्रैक्टर-ट्रॉली खुलेआम चलते हैं और कोई कार्रवाई नहीं होती।
स्थानीय किसान और मजदूर इस अवैध कारोबार से परेशान हैं। उनका कहना है कि रेत के लालच में नदियां और नाले खोखले होते जा रहे हैं। खेतों की सिंचाई प्रभावित हो रही है। बावजूद इसके प्रशासन मौन साधे हुए है। लोगों का साफ कहना है कि जब तक राजनीति से जुड़े बड़े नाम इस खेल में शामिल रहेंगे, तब तक कोई भी अधिकारी कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा।
चुनावी राजनीति में रेत का खेल
यह मामला सिर्फ अवैध उत्खनन तक सीमित नहीं है। रेत का पैसा सीधे-सीधे राजनीति को भी ताकत देता है। जानकारों का कहना है कि पंचायत से लेकर विधानसभा तक चुनावों में खर्च होने वाली बड़ी रकम का इंतजाम इसी कारोबार से होता है। यही वजह है कि किसी भी पार्टी के नेता खुलकर इसके खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।
पर्यावरण और समाज पर असर
रेत के अवैध उत्खनन से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है। नदियों का बहाव बदल रहा है, जलस्तर गिर रहा है और खेतों की उर्वरा शक्ति घट रही है। सबसे बड़ी चिंता यह है कि भविष्य में इन इलाकों में पानी की किल्लत और बाढ़ जैसी समस्याएं और बढ़ सकती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर समय रहते इसे नहीं रोका गया तो आने वाली पीढ़ियों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
सवालों के घेरे में प्रशासन
अब बड़ा सवाल यह है कि प्रशासन इस पूरे मामले में आखिर खामोश क्यों है। क्या प्रशासन पर नेताओं का दबाव है या फिर अधिकारियों की मिलीभगत है? लोगों का कहना है कि अगर सरकार वास्तव में अवैध उत्खनन पर रोक लगाना चाहती है तो सबसे पहले राजनीतिक संरक्षण पर चोट करनी होगी। वरना ट्रैक्टर-ट्रॉली पकड़ने की कार्रवाई सिर्फ दिखावा रह जाएगी।
ग्रामीण अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कोई सख्त कार्रवाई होगी। लोगों का कहना है कि अगर सरकार और प्रशासन ईमानदारी से काम करे तो इस कारोबार पर लगाम लग सकती है। लेकिन सवाल वही है क्या नेता अपने ही साथियों पर कार्रवाई होने देंगे?
अवैध रेत उत्खनन सिर्फ कानून तोड़ने की बात नहीं है, बल्कि यह राजनीति और अपराध के गठजोड़ का आईना भी है। जब तक नेतागिरी की आड़ में रेता गिरी का खेल जारी रहेगा, तब तक न तो नदियां बचेंगी और न ही व्यवस्था पर से लोगों का भरोसा।
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