Indian history : खान अब्दुल गफ्फार खान की गठरी के बारे में सुन उड़ जाएंगे आपके होश
Indian history : भारत देश का जब बटवारा नहीं हुआ था तब समय पर एक नाम काफी चर्चा का विषय बना हुआ था जिसका नाम खान अब्दुल गफ्फार खान था। आपने शायद इसके बारे में किताबों में पढ़ा होगा या तो फिल्म या नाटक शीर्षक में अपने उनके बारे में कुछ सुना होगा। जिनकी गठरी के बारे में एक चर्चा काफी विख्यात थी जो करीब 70 साल तक किसी को पता न चाली। लेकिन आखिरकार उसे गठरी का राज सबके सामने आ गया।
Indian history : जिसने भी उसे गठरी के बारे में सुना बस उसे जिज्ञासा थी कि उसे गठरी में आखिर ऐसा क्या होगा। तो इसलिए को ध्यान से पढ़ें और आपको इसमें वह सारी राज दिखाई दे जाएंगे जो आप देखना चाहते हैं।
Indian history : यह उसे समय की बात है जब भारत देश आजाद हो गया था और भारत का बंटवारा पाकिस्तान से हो गया था। खान अब्दुल ग़फ्फार खान हमेशा अपने साथ एक कपड़े की गठरी (झोला) रखा करते थे जिसे वह किसी को नही देते थे। वही महात्मा गांधी जी अक्सर उनसे यह मज़ाक़ किया करते थे की बादशाह के थैले मे ऐसा क्या है जो किसी को हाथ भी नही लगाने देते थे।
उसके बाद जब एक बार कस्तूरबा गाँधी ने महात्मा गांधी से यह कह दिया आप बादशाह को थेले के बारे में मज़ाक न किया करे। उनके थेले में सिर्फ एक पठानी सूट व ज़रूरत के कुछ सामान के अलावा कुछ भी नहीं है। जिसके बाद महात्मा गाँधी जी ने हंसकर बोला मुझे क्या पता नहीं है की उनके पास पहनने को सिर्फ दो ही कपड़े है। तभी तो मैं थेला देखने की बात किया करता हूं। ऐसा हंसी मज़ाक मैं सिर्फ बादशाह के साथ ही कर सकता हूं और किसी के साथ करते मुझे किसी ने देखा है क्या ? क्यों की बादशाह को मैं बिल्कुल अपने जैसा ही पाता हूँ।
जिसके बाद महात्मा गांधी का देहांत हो गया उसके बाद जब सन 1969 मे गांधी जी की जन्म शताब्दी थी जिसपर इंदिरा जी के विशेष आग्रह पर ईलाज के लिए खान साहब भारत आये तो हवाई अड्डे पर उन्हें लेने खुद इंदिरा गाँधी जी और जे॰पी॰ नारायण जी खुद आए। लेकिन जब बादशाह ख़ान हवाई जहाज से बाहर आये तो उनके हाथ में वही पोटली थी जिसके बारे मे गांधी जी हमेशा मज़ाक़ किया करते थे। जहा उनसे मिलते ही श्रीमती गांधी ने पोटली की तरफ हाथ बढ़ाया – इसे हमे दीजिये ,हम ले चलते हैं, बादशाह ख़ान ठहरे, बड़े ठंढे मन से बोले – यही तो बचा है, इसे भी ले लोगी ?
बँटवारे का पूरा दर्द ख़ान साब की इस बात से बाहर आ गया । जे॰पी॰ नारायण और इंदिरा जी दोनों ने सिर झुका लिया । जे॰पी अपने आप को संभाल न पाये ,उनकी आँख से आंसू गिर रहे थे।
Indian history : सन 1985 मे कांग्रेस स्थापना शताब्दी के अवसर पर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हे विशेष अतिथि के रूप मे एक बार फिर उन्हें आमंत्रित किया और इसके लिए तत्कालीन पाकिस्तान के तानाशाह प्रधानमंत्री जिया उल हक़ को उन्हे भारत आने की इजाजत दे दिया।
जहा ख़ान साहब जब भारत आए तब भी उनके हाथो मे वही पोटली थी जो पिछली बार 1969 मे इंदिरा गांधी के आमंत्रण पर वो साथ लाये थे। जहा राजीव गांधी इस पोटली के बारे जानते थे उन्होने बादशाह ख़ान से कहा आपने कभी महात्मा गांधी और इंदिरा जी को ये पोटली को हाथ भी नही लगाने दिया लेकिन अगर आप चाहे तो क्या मै इस पोटली को खोल कर देख सकता हूँ क्या? बादशाह ख़ान ने हँस कर अपने पठानी अंदाज़ मे कहा “ तु तो हमारा बच्चा है देख ले। नही तो सभी सोचते होंगे पता नही बादशाह इस पोटली मे क्या छुपाए फिरता है.
उसे समय पहली बार किसी ने खान अब्दुल गफ्फार खान की उसे गठरी को खोलकर देखा था जो की पहली और आखिरी शख्स प्रधानमंत्री राजीव गांधी उसे समय पर थे। जब राजीव गांधी ने पोटली खोल कर देखा तो उसमे सिर्फ दो जोड़ी लाल कुर्ता-पाजामा थे” जिसके बाद 1987 मे प्रधानमंत्री राजीव गांधी सरकार द्वारा उन्हे भारत रत्न से नवाज़ा गया था।
Indian history : महात्मा गांधी के सत्य अहिंसा के सिद्धांतो का एक ऐसा पुजारी जिसका नाम तो बादशाह खा़न लेकिन फक़ीरो की तरह तमाम उम्र सिर्फ दो जोड़ी कुर्ता पाजामा के साथ जिंदगी व्यतित की जब की वह अलीगढ़ विश्वविद्यालय से पढ़ा लिखा, पख़्तून के एक ज़मीदार का बेटा था और जिसका भाई लंदन से डाक्टर बन कर आया था और पख़्तून का मुख्यमंत्री था।
सोर्स – Muzakkir Qureshi