ऊपर से मिट्टी, नीचे से रेत… लगता है घुनघुटी क्षेत्र में चल रही पुष्पा पार्ट-3 की शूटिंग
उमरिया तपस गुप्ता (7999276090)
आपने फिल्म पुष्पा देखी होगी, जिसमें चंदन की अवैध तस्करी होती है। वहाँ नायक पुष्पा हर बार पुलिस और सिस्टम को छकाने के लिए नए नए हथकंडे अपनाता है। अब फिल्म तो परदे पर खत्म हो गई, मगर असली जिंदगी में उसका सिक्वल उमरिया जिले के घुनघुटी क्षेत्र में चल रहा है। फर्क बस इतना है कि यहाँ चंदन की जगह रेत है और पुष्पा की जगह सफ़ेद कुर्ता के नेता और संरक्षण देने वाले अधिकारी।
घुनघुटी चौकी क्षेत्र से गुजरते ट्रैक्टर-ट्रालियों को देखकर कोई आम आदमी यही कहेगा कि यह तो सामान्य मिट्टी ढो रहे हैं। लेकिन सच्चाई इतनी साधारण नहीं। ट्राली के ऊपर मिट्टी या अन्य सामग्री रहती है, जबकि नीचे की परत में छुपी होती है सोने से कीमती रेत । जिसे देखने की इजाज़त शायद सिर्फ संरक्षण देने वाले ही रखते हैं।
नदी-नालों से रेता गिरी
इस खेल का सबसे बड़ा मैदान बना है पाली जनपद का घुनघुटी इलाका। यहाँ के नदी-नाले दिन ढलते खोदे जा रहे हैं। रेत उत्खनन की गूंज गाँव-गाँव सुनाई देती है, मगर कान बंद हैं प्रशासन के। ग्रामीण जानते हैं कि कौन सी ट्राली किस नेता या किस व्यक्ति की है। यहाँ पर रेता गिरी खुलेआम हो रही है, और नाम दिया जा रहा है इसे विकास का।
नाम नेता गिरी, काम रेता गिरी
घुनघुटी में कहावत बन गई है नाम नेता गिरी, काम रेता गिरी। राजनीति की कुर्सी से लेकर पंचायत की चौपाल तक इस कारोबार के किस्से चर्चा में रहते हैं। भाजपा से ताल्लुक रखने वाले कई रसूखदार परिवारों पर उंगली उठती रही है। इनमें जायसवाल जी, यादव जी और बघेल जी के नाम सबसे ज़्यादा लिए जाते हैं। खुद को विधायक और सांसद का करीबी बताने वाले ये लोग खुलेआम अपनी पकड़ का प्रदर्शन करते हैं।
जंगल भी मौन, पुलिस भी
कहते हैं कि चोरी तभी फलती-फूलती है जब पहरेदार सो जाएं। यहाँ पहरेदार सोए नहीं हैं, बल्कि चौकन्ने होकर भी आँख मूँद लेते हैं। फॉरेस्ट विभाग की मिलीभगत और पुलिस की खामोशी ने इस अवैध कारोबार को पंख दे दिए हैं।
ग्रामीणों की मजबूरी
रेत का यह खेल सिर्फ सरकार और ठेकेदारों तक सीमित नहीं है। आम ग्रामीणों की परेशानी का आलम यह है कि उन्हें मकान बनाने के लिए वैध रेत तक नहीं मिलती मगर नेताओं के इशारे पर अवैध रेत से भरी ट्रालियां बेधड़ल्ले सड़क पर दौड़ती रहती हैं।
पुष्पा राज डायलॉग की याद
फिल्म पुष्पा का मशहूर डायलॉग था पुष्पा नाम सुनके फूल समझे क्या… आग है मैं। घुनघुटी क्षेत्र के इस अवैध कारोबार में भी यही तेवर नजर आते हैं। यहाँ के कारोबारी कहते हैं रेत नाम सुनके मिट्टी समझे क्या… नोट है ये। यही वजह है कि ट्राली में भरी रेत सीधे नोटों में तब्दील होती है और यह नोट ऊपर से नीचे तक सभी को गर्माहट देते हैं।

प्रशासन की चुप्पी
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जब सबको मालूम है, तब कार्रवाई क्यों नहीं होती। पुलिस चौकी, खनिज विभाग, फॉरेस्ट विभाग हर किसी को इन ट्रालियों की आवाज़ सुनाई देती है। मगर कार्रवाई का नाम लेने पर जवाब मिलता है जाँच की जा रही है। जाँच का यह खेल सालों से चलता आ रहा है।
जनता की उम्मीदें
ग्रामीण अब भी उम्मीद लगाए बैठे हैं कि कभी न कभी इस रेत साम्राज्य पर अंकुश लगेगा। लेकिन उनकी यह उम्मीद भी उसी ट्राली की तरह ऊपर से मिट्टी और नीचे से रेत जैसी है। ऊपर से दिखती है कार्रवाई की झलक, और नीचे छुपा है सच्चाई का बोझ।
घुनघुटी क्षेत्र में अवैध रेत कारोबार किसी फिल्मी पटकथा से कम नहीं। फर्क बस इतना है कि यहाँ कैमरा नहीं चलता और न ही कोई विलेन पकड़ा जाता है। हर दिन नए नए अंदाज़ से ट्रालियाँ निकलती हैं।

