Savan में हरी चूड़ियां पहनने की परंपरा, आस्था, परंपरा और विज्ञान का संगम
Savan मास यानी सावन का महीना हिन्दू धर्म में अत्यंत पावन और शुभ माना जाता है। यह महीना विशेष रूप से भगवान शिव और माता पार्वती की उपासना का समय होता है। इस दौरान महिलाओं द्वारा हरे रंग की चूड़ियां पहनने की परंपरा सदियों पुरानी है। यह परंपरा सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि सांस्कृतिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण मानी जाती है।
मां पार्वती को प्रिय है हरा रंग
ऐसा माना जाता है कि हरा रंग मां पार्वती को अत्यंत प्रिय है। सावन के महीने में विवाहित महिलाएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और हरे वस्त्र व हरी चूड़ियां पहनती हैं। यह रंग प्रकृति, समृद्धि और जीवन शक्ति का प्रतीक है। सावन में हरियाली तीज, मंगला गौरी और नाग पंचमी जैसे पर्वों पर महिलाएं पारंपरिक रूप से हरी चूड़ियों से श्रृंगार करती हैं।
Savan चूड़ियों की खनक और मन की शांति
चूड़ियों की खनक न केवल सजावट का हिस्सा है, बल्कि यह मानसिक तनाव को कम करने में सहायक मानी जाती है। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान के अनुसार, चूड़ियों की ध्वनि शरीर में ऊर्जा संतुलन बनाए रखने में मदद करती है। यह महिलाएं को आत्मिक संतुलन और सकारात्मकता का अनुभव कराती है।
सांस्कृतिक मेलजोल और परंपरा का प्रतीक
सावन में चूड़ियों का आदान-प्रदान महिलाओं के बीच आत्मीयता और स्नेह बढ़ाने का माध्यम भी है। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी महिलाएं समूह में इकट्ठा होकर गीत गाती हैं, झूला झूलती हैं और एक-दूसरे को चूड़ियां पहनाकर शुभकामनाएं देती हैं। यह परंपरा समाज को जोड़ने का कार्य करती है।
हरा रंग और नई ऊर्जा का संदेश
सावन के महीने में प्रकृति हरियाली से भर जाती है और जीवन में नई ऊर्जा का संचार होता है। हरे रंग की चूड़ियां पहनकर महिलाएं इसी हरियाली और ऊर्जा को अपने जीवन में आत्मसात करती हैं। यह परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सौंदर्य, विज्ञान और सामाजिक सरोकारों से भी जुड़ी हुई है।