घुँघुटी क्षेत्र में अवैध रेत का बोलबाला, पुलिस-फॉरेस्ट की मिलीभगत पर उठे सवाल
उमरिया तपस गुप्ता (7999276090)
उमरिया जिले के घुँघुटी क्षेत्र में अवैध रेत खनन का खेल खुलेआम चल रहा है। कानून और नियमों को ताक पर रखकर नदी-नालों और जंगलों से रेत का दोहन किया जा रहा है। स्थिति यह है कि दिन ढलते ही ट्रैक्टरों की कतारें निकल पड़ती हैं और पूरे क्षेत्र में रेत माफियाओं का बोलबाला दिखाई देता है। सवाल यह है कि जब इतनी बड़ी मात्रा में रेत का अवैध परिवहन हो रहा है तो फिर पुलिस और वन विभाग की आँखों से यह सब कैसे छिपा हुआ है?
जंगल और नदी-नालों से निकल रही रेत
भौतरा और आसपास के जंगलों से लगातार रेत की निकासी हो रही है। सूत्र बताते हैं कि यह सब कुछ बीट गार्ड, रेंजर और डिप्टी रेंजर की सहमति से हो रहा है। आधिकारिक तौर पर विभाग सख्ती की बात करता है, लेकिन हकीकत यह है कि माफियाओं और जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से यह कारोबार फल-फूल रहा है। यही वजह है कि अब ग्रामीणों के बीच सवाल उठ रहे हैं कि आखिर सरकार और प्रशासन की नाक के नीचे इतनी बड़ी चोरी कैसे चल रही है।
रात होते ही शुरू होता है खेल
घुँघुटी और आसपास के इलाकों में अवैध रेत का खेल आमतौर पर शाम ढलते ही शुरू हो जाता है। अंधेरे का फायदा उठाकर ट्रैक्टर नदी किनारों से रेत भरकर मुख्य मार्गों तक पहुँचते हैं। रातभर यह सिलसिला चलता है और सुबह होते-होते कई ट्रैक्टर रेत शहरों और कस्बों में पहुँच चुकी होती है। ग्रामीणों का कहना है कि कई बार उन्होंने पुलिस चौकियों और वन विभाग को इस बारे में जानकारी दी, लेकिन हर बार मामले को दबा दिया गया।
पुलिस और खाकी पर उठ रहे सवाल
रेत माफियाओं की सक्रियता और उनके बढ़ते हौसले देखकर यह सवाल उठना लाजमी है कि आखिर पुलिस क्या कर रही है? रेत से भरे ट्रैक्टर मुख्य सड़कों पर खुलेआम दौड़ते हैं, लेकिन कहीं रोक-टोक नहीं होती। कई बार ग्रामीणों ने देखा कि जिस रास्ते से रेत की ट्रैक्टरें निकलती हैं, वहाँ पुलिस की गश्ती गाड़ियाँ भी खड़ी होती हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होती। इस चुप्पी से साफ है कि पुलिस भी इस खेल में हिस्सेदार बनी हुई है।
फॉरेस्ट विभाग की चुप्पी संदिग्ध
वन विभाग की भूमिका भी उतनी ही संदिग्ध मानी जा रही है। जंगल से रेत निकालने के लिए बड़े पैमाने पर खुदाई की जाती है। इससे पर्यावरण को भारी नुकसान पहुँच रहा है, लेकिन फॉरेस्ट अमला चुपचाप तमाशा देख रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि बीट गार्ड और रेंजर खुद इस खेल से कमाई कर रहे हैं। रेत माफिया हर ट्रैक्टर पर तयशुदा रकम अधिकारियों तक पहुँचाते हैं और बदले में कार्रवाई से बच जाते हैं।
नेताओं की संलिप्तता
सूत्र यह भी बताते हैं कि इस पूरे अवैध कारोबार में कुछ सफेदपोश नेता भी शामिल हैं। उनका संरक्षण मिलने से रेत माफियाओं के हौसले और बढ़ जाते हैं। यही वजह है कि प्रशासन के निचले स्तर पर काम करने वाले कर्मचारी भी बेखौफ होकर माफियाओं से सौदेबाजी करते हैं। जब ऊपर से ही दबाव हो तो फिर कोई अफसर कार्रवाई का जोखिम नहीं उठाना चाहता।
ग्रामीणों में आक्रोश
लगातार हो रहे अवैध रेत खनन से ग्रामीणों में आक्रोश बढ़ता जा रहा है। नदी और नालों का स्वरूप बिगड़ रहा है, जंगलों का संतुलन खतरे में है, लेकिन शासन-प्रशासन के जिम्मेदार मौन साधे हुए हैं। ग्रामीणों का कहना है कि यदि यही हालात रहे तो आने वाले समय में क्षेत्र में जलसंकट जैसी स्थिति पैदा हो सकती है।
अवैध रेत खनन का कारोबार केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह कानून-व्यवस्था और भ्रष्टाचार की भी बड़ी समस्या बन गया है। पुलिस और फॉरेस्ट विभाग की मिलीभगत से रेत माफिया दिन दूनी रात चौगुनी कमाई कर रहे हैं। ऐसे में प्रशासन को चाहिए कि वह उच्चस्तरीय जाँच कराए और इस पूरे रैकेट में शामिल अधिकारियों और नेताओं पर कार्रवाई करे। वरना स्थिति और गंभीर हो जाएगी।
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