धार्मिकता, संगीत और पराक्रम के प्रतीक, REWA महाराजा रघुराज सिंह जूदेव
REWA रियासत के इतिहास में महाराजा रघुराज सिंह जूदेव (1823–1888) का नाम धर्म, संस्कृति, संगीत और मर्यादा के संवर्धक के रूप में अमिट है। 1854 से लेकर अपने निधन तक लगभग 34 वर्षों तक उन्होंने बघेल राजवंश की परंपराओं और रीवा की गरिमा को ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
1857 के विद्रोह काल में उन्होंने न केवल अपने राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित की बल्कि प्रशासनिक सुधार और धार्मिक आयोजनों को भी बढ़ावा दिया। कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन में 59,000 से अधिक ऐतिहासिक कार्य किए।
वे भगवत भक्त और रामायण रसिक थे, जिनके दरबार में कथा-कीर्तन के बाद ही राजकार्य आरंभ होता था। भगवान जगन्नाथ की तपस्या उन्होंने एक पैर पर खड़े होकर 40 दिन तक की थी। रघुराज सिंह को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा उस्ताद दिलावर अली खाँ और करम अली खाँ से मिली।
महाराजा ने रीवा रियासत की पहचान को सुदृढ़ करते हुए भव्य गोविंदगढ़ किले का निर्माण कराया। उनका विवाह मेवाड़ महाराणा सरदार सिंह की पुत्री से हुआ था, जिससे रीवा और मेवाड़ के राजवंशीय संबंध और प्रगाढ़ हुए।
रोचक प्रसंगों में उनके अंतिम संस्कार का उल्लेख प्रमुख है, जब उनकी सात रानियाँ सती होने के लिए अड़ गई थीं, लेकिन समझाने पर वे मानीं और अगले दिन अंतिम संस्कार हुआ।
महाराजा रघुराज सिंह जूदेव को आठ शब्दों में यूँ याद किया जाता है—
“धार्मिक राजा, संगीत प्रेमी, गोविंदगढ़ निर्माता, बघेल रक्षक
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