जमोड़ी काष्ठागार बना ‘चोरीघर’! 8 बैटरी गायब, CCTV बंद, गार्ड ड्यूटी पर – फिर भी वन विभाग “क्लीन” कैसे? लापरवाही या अंदरूनी सांठगांठ?
सीधी जिले के जमोड़ी काष्ठागार में जप्त गाड़ियों से आठ बैटरी चोरी का मामला अब वन विभाग के गले की हड्डी बन चुका है। हैरानी की बात यह नहीं कि चोरी हुई—चौंकाने वाला यह है कि पूरी घटना के बाद भी विभाग का अमला इसे दबाने में लगा रहा, जैसे कुछ हुआ ही न हो! सवाल उठता है—क्या यह चोरी है, या फिर वन विभाग के अंदर बैठा कोई “गिरोह” काम कर रहा है?
जमोड़ी काष्ठागार वह जगह है जहां जप्त वाहन सुरक्षा के नाम पर रखा जाता है। तीन सुरक्षा गार्ड 24 घंटे ड्यूटी पर और ऊपर से CCTV निगरानी—फिर चोरी कैसे हो गई? और चोरी भी एक नहीं, आठ-आठ बैटरियां! सबसे बड़ा खुलासा—घटना से कुछ दिन पहले ही काष्ठागार के सभी CCTV कैमरे ‘अचानक’ बंद कर दिए गए। क्या यह संयोग है? या फिर चोरी को अंजाम देने की “प्लानिंग”?
गाड़ी मालिक रविंद्र बताते हैं कि 24 अक्टूबर को उन्होंने अपनी गाड़ी की बैटरी चोरी मिली तो तुरंत लिखित शिकायत दी, लेकिन वन विभाग ने न तो आवेदन की पावती दी और न कार्रवाई। उल्टा शिकायत दबा दी गई। रविंद्र का आरोप साफ है—“वन विभाग के लोग ही मामले को दबाने और बचाने में लगे हुए हैं।” यदि बाहरी चोर होते तो CCTV क्यों बंद? और सुरक्षा गार्डों पर क्यों कार्रवाई नहीं?
डिपो इंचार्ज व रेंजर दिनेश मिश्रा का बयान तो और भी चौंकाने वाला है—“गाड़ियां तो हमारे यहां रख दी जाती हैं, पर कागजात नहीं दिए जाते, इसलिए हमें पता ही नहीं कि कौन-सी गाड़ी में क्या सामान है।” सवाल यह—तो फिर सुरक्षा किस चीज़ की कर रहे थे? नाम की, या भ्रष्टाचार की ढाल बनने की?
थाना प्रभारी दिव्य प्रकाश त्रिपाठी ने भी चुप्पी तोड़ते हुए बड़ा खुलासा किया—यह पहला मामला नहीं! ऐसे कई पिछले मामलों पर विभाग ने FIR तक दर्ज नहीं होने दी। पहले विभागीय जांच का बहाना और फिर रफादफा—यानी चोरी, जांच और बचाव—सब “इन-हाउस मैनेजमेंट”!
डीएफओ प्रीति अहिरवार ने इसे “बड़ा षड्यंत्र” बताते हुए जांच टीम गठित करने की बात कही है, लेकिन सवाल यह है—जब रेंजर की जांच में “कोई दोषी नहीं” निकला, तो क्या यह जांच भी सिर्फ लीपापोती बनकर रह जाएगी?
